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________________ (३६८) "प्रतिष्ठाविधि" ___स्पष्टीकरण-उपर जणान्या प्रमाणे विधि तथा माशय शुद्ध 'जिनबिंब ' तैयार थया पछी तेनो मन, वचन अने कायाना शुभ व्यापारो साथे चंद्र, ग्रह, नक्षत्र आदि शुभ योगमा उच्च स्थानमा वर्तता होय ते समये निष्पन्न मंदिरमा प्रवेश करवो अर्थात् योग्य स्थलमा प्रवेश कराववो, योग्य स्थानमा बिराजमान करवू; परंतु ज्या बिंब स्थापन कर होय एवा मंदिरनी आसपास अन्पमां अन्प (१००) सो हाथमां अस्थि, मांस, अशुचि आदि पदार्थों पहेलाना अगर पछीना पड्या न होय तेनी योग्य शुद्धि करवी अर्थात् क्षेत्रशुद्धि कर्या पछी ज त्यां बिंब स्थापन करवं. तेमज ज्यां बिंब पधरावq होय त्यां जमीननी अंदर पण अस्थि, मांस के अपवित्र पदार्थोनी तपास कर्या पछी ज बंधावQ, अन्यथा ते मंदिर उपघातक अने अल्प समयमां विनाशी बने. प्राथी मंदिरनी आसपास प्रतिष्ठा कर्या पछी पण अपवित्र पदार्थो पडे नहीं, गंदकी कोइ करे नहीं तेनो खास विवेक राखवो जोइए. ए प्रमाणे क्षेत्रनी शुद्धि कर्या पछी ते जिनमंदिरने प्रतिष्ठा पहेला अने पछी सुगन्ध, पुष्प, धूप आदि पदार्थोवडे अत्यंत सुवासित करवू, सुगन्धमय करवं, आसपासनी जमीन पण सुवासित करवी. शास्त्रकर्ता कहे छे के निश्चयथी सुगन्धमय करवू, जेथी दुर्गन्धना संस्कारो उडी जाय, उत्तम देवताओ प्रसन्न थाय, हृदय अने आत्मा आनंद पामे, दिलनुं आकर्षण थाय. लोकोमा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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