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________________ पीवी विधिशुद्ध जो (३६७) " स्पष्टीकरण" - सातमा प्रकरणमा : जिनबिंब' करणनी विस्तारथी जे विधि दर्शावी तदनुसार ' जिनबिंब' तैयार थया पछी तुरतज प्रथम कहेल विधिशुद्ध मंदिरमा सुप्रतिष्ठित करवू. एटले दश दिवसनी अंदर ज प्रतिष्ठा जो थाय तो ते उत्तम अने शास्त्रोक्त प्रतिष्ठा गणाय, अर्थात् आ प्रतिष्ठाकर्ता तथा कारयिता अने श्रीसंघ स्वजनो सर्वने एकान्त कल्याण तथा सर्वतो प्रकारे उन्नतिभूत अवश्य बने. दश दिवसनी अंदर कहेवानो तात्पर्य ए के-ते उत्तम अबाध्य प्रतिष्ठा कहेवाय; बाकी मध्यम अने जघन्य प्रतिष्ठा जाणवी. माथी ज श्लोकमां 'आशु' ए पद प्राप्यु. श्लोकमा 'खलु' ए पद वाक्यालंकार माटे आपेल के अथवा ' खलु' शब्दनो ' 'एव' अर्थ करवो. एटले दश दिवसमां ज प्रतिष्ठा करवी; परंतु त्यारवाद थाय ते उचित न गणाय. मा प्रतिष्ठा पण शास्त्रमा संक्षेपथी त्रण प्रकारनी दर्शावी छे. भहीं ग्रंथकर्ता " दश दिवसनी अंदर प्रतिष्ठा करवी." पाटलुं विधान करीने प्रतिष्ठाना प्रकारो तथा प्रतिष्ठानुं स्वरूप आदिनुं भागळ विस्तारथी वर्णन करे के, परंतु प्रथम प्रतिष्ठाविधि प्राचार्ये न कही तेनुं कारण पंचाशकना पाठमा प्रकरणमां ग्रंथकाए विस्तारथी प्रतिष्ठाविधि दर्शावी छे. अतएव नहीं तेनुं कथन करवू ते ग्रंय वधारवा जेवू गणाय. अहीं प्रतिष्ठाविधिना स्वरूपनुं दर्शन करावq आवश्यक होवाथी पंचाशकमांहेलुं वर्णन अमे अत्र अवतारीए छीए.
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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