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________________ (१०९) श्रा जन्म के अपर जन्ममा अनिष्ट अपायो आवता ज नथी. एवं ईर्यादिसमितिवान् होवाथी विनय, वैयावच्च, भक्ति, सरलता, नम्रता श्रादि गुणो जरुर होय, एटले आचार्य, उपाध्याय आदिनी समीपे सूत्रवाचनादि मंडलीमां बेठवानो पूर्ण अधिकार प्रा मुनिने यथेष्टपणे प्राप्त थाय छे, जेथी सिद्धान्तज्ञान सुखपूर्वक उपलब्ध थाय; माटे अावा मुनिने आगमज्ञाननी प्राप्तिद्वारा पण आठ प्रवचनमाता फलदातृ अवश्यमेव बने छे. निष्कर्ष एटलो के-ईर्यासमिति आदिमां सावधान मुनिने ज आ सूत्रादिनी वाचनामंडलीमां बेसवानो अधिकार कह्यो छे. अहीं आचार्यश्रीए 'मध्यबुद्धि' जन योग्य उपदेशविधिनो उपसंहार करी अन्तमां पाठ प्रवचनपातानुं बराबर पालन करवानुं पर्याप्त फलनो निर्देश ए रीते कॉ. परमार्थ के-उपदेशके ए रीते 'मध्यमवर्ग' पासे पाठ प्रवचनमातार्नु अवसान फल पण अवश्य जणावq." ____ गत श्रार्या श्लोकमां आठ प्रवचनमाता-पाळक मुनिने भागमज्ञाननो अधिकारी कह्यो. आगमज्ञान गुरुमहाराजना हृदयमां ज विराजित होय छे, माटे 'मध्यमवर्ग' ने आ उपदेश पण साथे साथे उपदेशके करवो गुरुपारतंत्र्यमेव च. तद्बहुमानात्सदाशयानुगतं ॥ परमगुरुप्राप्तेरिह बीजं, तस्माच्च मोक्ष इति ॥ २-१० ॥
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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