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________________ (१०५) मुनियोए हितवत्सलमातानी तुल्य अष्ट प्रवचनमातानी नित्य सेवा करवी; निश्चयतया कदापि तेनो पल्लव छोडवो नहीं. " तीर्थभूतमाता" स्पष्टीकरण-श्रा आर्यामां आचार्यश्री आठ प्रवचनमातानी सेवा करवानो उपदेश जणावे छे. आठ प्रवचनमातानुं स्वरूप आगलनी आर्याना विवरणमां विस्तारथी दर्शावी गया. आ आठ प्रवचनमाताने महर्षियो मातानी उपया आपी तेनो मातृत्वपणे निर्देश करे छे. उपकारज्ञ जनो मातानी सेवा एक क्षण पण विसरता नथी, कारण के माता जन्मदात, पालनकर्ता अने हितकत होवाथी अतुलित-अप्रतिकार्यअनन्य उपकारिणी शास्त्रोमां कही छे. अतएव उत्तमजनो तेनी सेवा करवामां ज पोतार्नु सुख, यश, प्रतिष्ठा, इतिकर्तव्यता समजे छे. एटले "आतीर्थमिवोत्तमानाम्" "तीर्थनी माफक यावत्जीवन भक्तिपूर्वक आराध्य मानी उत्तम पुरुषो मातानी सेवा करे." ए उक्तिने चरितार्थ करे छे. निदान के-माता माटे भक्तिथी पोताना प्राणो समीने पण जींदगीनी अंतिम क्षण पर्यंत जेत्रो सेवा करे ते ज उत्तम पुरुष जाणवो. "प्रवचनमातृत्व-तत्सेवा" ___अहीं लौकिक आराध्योमां माता जेम उत्कृष्ट प्राराध्य मानी छे, परंतु तेनी समान अन्यमां तेवा गुणो न होवाथी अन्यने तथाप्रकारे आराध्य मानेल नथी. एवं लोकोत्तर कियातत्वमा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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