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________________ (१०४) कल्याणकर्ता बने छे. सारांश के-दरेक प्रकारनी जुदी जुदी व्याख्यानो सार एटलो ज के मुनि-प्राचार मातृवत् एकान्त हितकारी जाणवो. " समाप्ति" संक्षेपमां-अहीं पर्यंत दर्शावेल मुनि-आचारनी व्याख्या मध्यमबुद्धिवर्ग पासे उपदेशके करवी, केमके ते लोको वधु रीते मुनियोना उपरोक्त आचारो तरफ अधिक ख्याल राखे छ. एटले आ आचारो श्रवण करी धर्मश्रद्धामां तेओ वधु मक्कम थाय त्यारपछी तेभोने प्रागमतत्त्वनुं स्वरूप समजावी बुध योग्य अवस्थामां आरूढ थाय तेम आचार्ये करवू शास्त्रीय गणाय. निदान के-मध्यमवर्गनी कोटीमां ज रहे ते काइ उपदेशनुं फल पर्याप्त न गणाय. उपर कहेला मुनि आचार माटे ज वधु खुलासो करता ग्रंथकार आठ प्रवचनमातानुं पालन करवानो स्पष्ट उपदेश दर्शावे छे अष्टौ साधुभिरनिशं मातर, इव मातरः प्रवचनस्य । नियमेन न मोक्तव्याः, परमं कल्याणमिच्छद्भिः ॥२-८ ॥ मूलार्थ-परम-उपमातीत कल्याण-सुखना इच्छक एवा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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