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(६८) वर्तन बजे जूदा जूदा दर्शाव्या होय तो ते शास्त्र कपशुद्ध न होवाथी स्वीकार्य नथी; बल्के सर्वथा हेय जाणवू. अतः कषशुद्धि पछी शास्त्रना अांतरभागनी परीक्षा करवा छेदशुद्धिद्वाराए मुमुक्षुओए अवश्यमेव चिकित्सा करवी. जे शास्त्रमा विधेयवाक्यो अने निषेधवाक्यो कह्या पछी तेनी पुष्टि माटे विविध प्रकारनी बाह्य पवित्र क्रियाओ कथन करी होय, तेने पाळवाना विविध प्रकारो दर्शाव्या होय, अथवा जेथी विधेयवाक्यो अने निषेधकवचनोने जोर मळे तेवा विषयो जेमां अच्छी रीते वर्णव्या होय तो ते शास्त्र छेदशुद्ध कही शकाय. जेमके-विधेयमार्गमां दान, तप, स्वाध्याय विगेरे कह्या छे, तो तेना पोषण माटे जैन सिद्धान्तमा दानवें स्वरूप, भेदो अने फल दर्शावी तथाप्रकारे करवानो उपदेश प्रापी तेना पर अनेक दृष्टांतो कही पोषण कयुं छे. एवं तपनुं स्वरूप, द्वादश भेदो, तेनुं फल अने तेने आचरणमां मूकवानो उपदेश आपी खुद महावीर भगवानना दृष्टांतथी पुष्टि करी छे. स्वा. ध्याय विगेरे माटे पण तथाप्रकारे ज प्रगाढरीत्या उपदेश कों छे; एटलं ज नहीं किन्तु साधु अने गृहस्थना व्रतो, क्रियात्रओ, अतिचार, अनाचार दर्शायी विधिवादने घणा जोरथी पोष्यो छे. ए ज रीते निषेधक वाक्योथी मोहत्याग, कषायत्याग, हिंसा, झूठ आदिनो निषेध करी आ पापोना त्याग माटे भिन्न भिन्न क्रियापंथो दर्शावी पालनता-कर्तव्यता पर बहु बहु जोर प्रापी अनेक दृष्टांतो कह्या छे. प्रतः पा रीतना जे शास्रो ते