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बोलवं, चोरी, मैथुन न करवा विगेरे या सर्व प्रतिषेध वाक्यो जावा. या रीतना विधि, निषेध वाक्यो जेमां होय ते कषशुद्ध जाणवा. सोनानी परीक्षा करवा माटे प्रथम तेनी कसोटी पर
कापी शुद्धि कराय छे, एवं जे धर्मशास्त्रमां या उभय वाक्यो कर्तव्यनो उपदेश अने कर्तव्यनो त्याग उपदेशता होय तेज शास्त्र कषशुद्ध जाणवु; परंतु जे शास्त्र हिंसा आदि पापकर्मना त्यागना बदले कर्तव्यतया कथन करे ते शास्त्र आकषशुद्धिमां भावी शके नहीं. अतएव ' यज्ञमां हिंसा कर्तव्य छे एम स्पष्ट प्रतिपादन करनार वेदादि अने विषयकषाय आदिनी पुष्टि करनार पुराणादि शास्त्रो कषशुद्ध क्यांथी संभवे १ शुद्धि "
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कषशुद्धि बाद छेद तपासवा जोइए. " तत्संभवपालनाचेष्टोक्ति छेद इति" ज्यां विधि, निषेधनी संभावना, पालन तथा वर्तनमां मूकवानुं जणान्युं होय ते छेद कह्यो छे. घणीवर सुवर्ण कसोटी पर बराबर शुद्ध देखाय हे छतां पाछलथी तेमां भेद नीकळी आवे छे, माटे परीक्षको सोनाने कापीने तेना अंदरना भागनी परीक्षा करवा चूकता नथी. ए ज रीते शास्त्रोमां विधि, निषेध उभय वाक्यो दर्शाव्या होय; किन्तु ते प्रमाणे करी शकाय के नहीं, तेनुं पालन करवुं जोइए विगेरे विषयो गुप्त राख्या होय अगर न जणाव्या होय या तो करवानुं अन्यथा प्रकारे दर्शाव्युं होय एटले उपदेश अने