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श्रावक धर्म विधि प्रकरण
this resolve with three means ( mind, speech, and body) and in three ways (neither indulge himself in unrighteous activities, nor cause others to do so, or approve others doing so).
एयं अनंतरुतं मिच्छं मणसा न चिंत 'सयमेसो य करेऊ, अण्णेण कए वि सुदु कयं ॥
३२. इस प्रकार पूर्वोक्त लौकिक देवों के वन्दनादिक रूप मिथ्यात्व के सम्बन्ध में मन से भी यह चिन्तन न करे कि मैं स्वयं मिथ्या कार्य करूँ या अन्य से करवाऊँ अथवा अन्य के करने का समर्थन करूँ ।
32. Thus he should not even think that he himself would indulge, inspire others to indulge, and approve of others indulging in the above explained unrighteousness (worship, etc. of the mundane gods).
एवं वाया न भाइ, करेमि अण्णं च न भणइ अनकयं न पसंसह, न कुणइ सयमेव कारणं ॥
करेमि |
३२ ॥
३३. इस प्रकार मन के समान वाणी द्वारा और काया से भी मिथ्या कार्य न तो स्वयं करे और न अन्य को प्रेरित करे और न अन्य के करने पर उसकी प्रशंसा ही करे ।
करसन्नभमुहखेवाइएहिं न पसंसह
33. In the same way (like thinking) one should neither do himself nor inspire others to do or praise others doing any such false activity through speech and body.
य
कारवे
छोडियहसियाइचेद्वाहिं ॥
न
करेहि ।
३३ ॥
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अनेणं ।
अन्नकयं,
३४. हाथ के इशारे से, आँख की चेष्टा से, वस्त्र हिलाकर, चुटकी बजाकर, हँसकर आदि चेष्टाएँ करते हुए न तो स्वयं मिथ्या कार्य करे और न अन्य से करावे और न अन्य के करने पर उसकी प्रशंसा ही करे ।
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