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________________ (श्रावक धर्म विधि प्रकरण) दृष्टि से विचार किया गया है। इसमें भाष्यगत अनेक गाथाएँ भी उद्धृत की गयी हैं। इसी प्रकार पंचम अध्ययन की वृत्ति में १८ स्थाणु अर्थात् व्रत-षट्क, कायषट्क, अकल्प्य भोजन-वर्जन, गृहभोजनवर्जन, पर्यंकवर्जन, निषिध्यावर्जन, स्नानवर्जन और शोभावर्जन का उल्लेख हुआ है। षष्ठ अध्ययन में क्षुल्लकाचार का विवेचन किया गया है। सप्तम अध्ययन की वृत्ति में भाषा की शुद्धि-अशुद्धि का विचार है। अष्टम अध्ययन की वृत्ति में आचार-प्रणिधि की प्रक्रिया एवं फल का प्रतिपादन है। नवम अध्ययन की वृत्ति में विनय के प्रकार और विनय के फल तथा अविनय से होने वाली हानियों का चित्रण किया गया है। दशम अध्ययन की वृत्ति भिक्षु के स्वरूप की चर्चा करती है। दशवैकालिक वृत्ति के अंत में आचार्य ने अपने को महत्तरा याकिनी का धर्मपुत्र कहा है। . २. आवश्यक वृत्ति- यह वृत्ति आवश्यक नियुक्ति पर आधारित है। आचार्य हरिभद्र ने इसमें आवश्यक सूत्रों का पदानुसरण न करते हुए स्वतन्त्र रीति से नियुक्ति-गाथाओं का विवेचन किया है। नियुक्ति की प्रथम गाथा की व्याख्या करते हुए आचार्य ने पाँच प्रकार के ज्ञान का स्वरूप प्रतिपादित किया है। इसी प्रकार मति, श्रुत, अवधि, मन:-पर्यय और केवल की भी भेदप्रभेदपूर्वक व्याख्या की गई है। सामायिक नियुक्ति की व्याख्या में प्रवचन की उत्पत्ति के प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि कुछ पुरुष स्वभाव से ही ऐसे होते हैं, जिन्हें वीतराग की वाणी अरुचिकर लगती है, इसमें प्रवचनों का कोई दोष नहीं है। दोष तो उन सुनने वालों का है। साथ ही सामायिक के उद्देश, निर्देश, निर्गम, क्षेत्र आदि तेईस द्वारों का विवेचन करते हुए सामायिक के निर्गम द्वार के प्रसंग में कुलकरों की उत्पत्ति, उनके पूर्वभव, आयु का वर्णन तथा नाभिकुलकर के यहाँ भगवान ऋषभदेव का जन्म, तीर्थङ्कर नाम, गोत्रकर्म बंधन के कारणों पर प्रकाश डालते हुए अन्य आख्यानों की भाँति प्राकृत में धन नामक सार्थवाह का आख्यान दिया गया है। ऋषभदेव के पारणे का उल्लेख करते हुए विस्तृत विवेचन हेतु वसुदेवहिंडी' का नामोल्लेख किया गया है। भगवान् महावीर के शासन में उत्पन्न चार अनुयोगों का विभाजन करने वाले आर्यरक्षित से सम्बद्ध गाथाओं का वर्णन है। चतुर्विंशतिस्तव और वंदना नामक द्वितीय और तृतीय आवश्यक का नियुक्ति के अनुसार व्याख्यान कर प्रतिक्रमण नामक चतुर्थ आवश्यक की व्याख्या में ध्यान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। साथ ही सात प्रकार के भयस्थानों सम्बन्धी अतिचारों की आलोचना की गाथा उद्धृत की गई है। पञ्चम आवश्यक के रूप में कायोत्सर्ग का विवरण देकर पंचविधकाय के उत्सर्ग की तथा षष्ठ आवश्यक में प्रत्याख्यान की चर्चा करते ४७
SR No.022216
Book TitleShravak Dharm Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorVinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages134
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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