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एवो बे के, जेम सराग संयमनी अनुमोदना करवाथी ते अनुमोदना करनारनी कुक्षिनी अंदर राग पेसी जतो नथी, तेम
व्यस्तवनी अनुमोदना करवाथी तेमां हिंसानो जाग पेसी जतो नथी. संयमपणानी अनुमोदना करवामां रागनो अंश प्रास यतो नथी; अने व्यस्तवनी अनुमोदना करवामां हिंसानीतो प्राप्तिज नथी. २४
विशेषार्थ- मूल अर्थमा समावेलो बे.
अव्यस्तव उपदेश करवा योग्य न होवाथी अनुमोदवा योग्य नथी, एवी लुंपक मतिनी वाणीने निरास करवा कहेते. मिश्रस्यानुपदेश्यता यदि तदा श्राद्धस्य धर्मस्तथा, सर्वः स्यात्सदृशी नु दोष घटना सौत्रक्रमोल्लंघनात् । तत् सम्यग् विधिनक्तिपूर्व मुचितद्रव्यस्तवस्थापने, विद्मो नापरमत्र लुंपक मुखम्लानिं विना दूषणं ॥२५॥
अर्थ :- जो मिश्र व्यस्तव साधुजेन उपदेश करवा योग्य न होय तो, श्रावकनो सर्व धर्म उपदेश करवा योग्य न थाय. कारण के तेमां पण दोषनी घटना, सूत्रना क्रमनुं उल्लंघन कर - वाथी सरखीज बे. तेथी सम्यक् प्रकारे विधि नक्तिपूर्वक योग्य एवा प्रव्यस्तवनो उपदेश करवामां, ते लुंपक मतिना मुख उपर येली ग्लानि शिवाय बीजुं दूषण श्रमे जाणता नथी. विशेषार्थ - नथी ..