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(५) बुद्धिनां कारण ने, अने ते शुषहदयवाला गीतार्थ पुरुषोए शास्त्रथी श्रने स्वानुनवथी श्छेल तथा वारंवार जोयेल . तेमबतां अर्हत् प्रतिमानो अनादर करी मात्र नाव अर्हत् ने जे माननारा बे. तेउनी बुद्धि दर्पणमा मुखजोनारा अंध पुरुषोनी जेम कोण मात्र !॥२॥
विशेषार्थ-शुछ हृदयवाला गीतार्थ पुरुषोए नाम विगेरे त्रणअहिं नामादि पदनो अर्थ नाम विगेरे त्रण निदेप एम लेवानो वे. एटले कृदभिहित ए व्याकरणना न्यायथी एवो अर्थ थाय के, निक्षेप करातां नामादि त्रण, लावरूप जगवंत अर्थात् निदेपरूपे थता नावरूप जगवंतमां अनेद बुधिना कारण ने. ते कारण शास्त्रना प्रमाणथी अने स्वानुलव एटले स्वगत तार्किक बुधिना प्रमाणथी वारंवार श्छेल ने अने जोयेल , अर्थात् शास्त्रथी श्छेल अने अनुलवधी जोयेल . आ कथनथी तत्वप्राप्तिना समग्र उपाय सूचव्या. ते विष योगाचार्यना वचनने अनुवाद करनारा श्रीहरिभद्र सूरि कहे जे के “ श्रागमेनानानुमानेन, ध्यानान्यास रसेनच । त्रिधा प्रकटपयन् प्रज्ञां बनते तत्वमुत्तमं ॥” आगम अनुमान अने ध्यानान्यास-ए त्रण प्रकारे बुधिने प्रसारनार पुरुष उत्तम तत्त्व प्राप्त करे . तेथी नामादि त्रण निदेप मध्येना स्थापना निदेप रूप अईत् प्रतिमानो अनादर करनारा अने मात्र नाव निक्षेपनेज आगल करी पोताना वचन मात्रने प्रमाण करनारा जे पुरुषो , तेउनी बुद्धि दर्पणमां पोतानुं मुख जोवाने स्वता अंध पुरुषोना जेवी . अर्थात् कां नथी.