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माना संबंधां पण विधि विगेरेनुं निर्दोषपणुं केम न जोवाय ? अर्थात् त्यांपण जोवाय. एवीरीते जिनप्रतिमानी पूजामां द्वेष बोडी देवो जोइए. ते संबंधमां शकुंतलानुं दृष्टांत ध्यानमां लेवुं. पंकित पुरुषोए, या प्रतिमा माता, पिता, पितामह विगेरे वडिलोए करावेली वे, वो कदाग्रह ( अभिनिवेश ) बोडी दई विशेष पणे सर्व चैत्यने विषे जक्तिश्री श्री जगवतनी प्रतिमानी पूज्यता कथन करेली बे; कारण के एप्रमाणे काल विगेरेना आलंबनथी बोधि सुलत थाय बे. तेविषे श्राद्धविधिमां प्रमाणे पाव बे. प्रतिमा विविध प्रकारनी बे. तेज॑ना पूजाविधिना सम्यक्त्व प्रकरणमां याप्रमाणे कह्युं छे. " गुरुकारिया के अन्ने सयंकारियाबिंति विह कारिया ने पडिमाए पूणविहाणं तेनी व्याख्या प्रमाणे बे. केटलाएकश्रावको पोतानां भातपिता विगेरे मीलोए स्थापेली प्रतिमार्जनी पूजाविधिमा - त्याग्रह राखे बे, कोइ पोते स्थापेली प्रतिमानी पूजाविधिमां त्याग्रह राखेने को तो सुविधिश्री प्रतिष्ठा करवामां वेली होय तेज प्रतिमा पूजवी एवो आग्रह राखे बे. मुख्य पतो वो केवल विगेरेए स्थापेली प्रतिमाउंज पूजवी वो दाग्रह ममत्व तजीद सर्व प्रतिमा विशेषपणे अर्थात् सामान्य बुद्धिथी पूजवी जोइए. कारण सर्व तीर्थंकरनी आकृति जोवाथी तेवी बुद्धि था शके बे. जो पुराग्रह राखी तीर्थकरनी प्रतिमा उपर पक्षपात राखे तो श्री अत भगवंतना बिंबनी अवज्ञा करी कहेवाय अने तेवी अवज्ञा करनारने पुरंत संसारमां परिभ्रमण करवारूप दंड बलात्कारे