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________________ (ए) प्राप्या नूनमुपक्रिया प्रतिमया नो कापि पूजा कृता, चैत्यन्येन विहीनया तत श्यं व्यर्थेति मिथ्या मतिः॥ पूजानावत एव देवमणिवत् सा पूजिता शर्मदे, त्येतत्तन्मतगर्वपर्वतनिदावजं बुधानां वचः ॥ ६ ॥ अर्थ- चैतन्यविनानी प्रतिमानी पूजा करनार पुरुष कोई पण उपकृतिने प्राप्त थतो नथी, तेथी ते प्रतिमानी पूजा व्यर्थ बे, एवी लुपकोनी वाणी तदन मिथ्या . कारण के जो ते प्रतिमानी पूजा नावथी करी होय तो ते देवमणिनी जेम सुखदायक . आप्रमाणे विधानोनुं वचन तेमना मतना गर्वरूप पर्वतने नेदवामां वज्ररूप . ॥ ६ए॥ विशेषार्थ- चैतन्यथी रहित एवी प्रतिमार्नु पूजन करनार पुरुष कोइ पण उपकारने प्राप्त करतो नश्री, ते कारणथी आ पूजा व्यर्थ . श्रावी लुंपकोनी वाणी तदन असत्य जे. कारण के तीर्थकर नगवाननी प्रतिमानी पूजा जो नावपूर्वक करी होय तो ते देवमणिनी जेम सुखदायक आप्रमाणे विधानोनुं वचन तेमना मतना गर्वरूप पर्वतने नेदवामां वज्रसमान बे, ते बाबतमां आप्रमाणे काव्य . एवं युक्त्या शंजोनत्या सूत्रे व्यक्ता ढुंपाका, श्चित्तोडिक्ता माया सिक्ताः कृप्ता रिक्ताः किंपाकाः॥ एतत् पुण्यं शिष्टैर्गुण्यं निर्वैगुण्यं सद्बोधै, स्तत्वं बोध्यं मत्या शोध्यं नैवायोध्यं निःक्रोधैः॥१॥
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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