SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (एए) अर्थ- उपर प्रमाणे पवित्र सूत्रोना समूहमां वर्णवेली, नियुक्तिलाष्य विगेरेथी, तथा उत्तम न्यायपूर्वक सिद्ध करेली, ए. वी लगवंतनी प्रतिमा सत्पुरुषोने आराध्य होवाथी प्रमाणरूप बे; अने धर्मति लोकोनी कुयुक्ति अंधपरंपराथी हणाइ गयेली होवाथी तेमां अवकाश पामती नथी अर्थात् घटती नथी. वली नगवंतनी प्रतिमाना दर्शनथी गायेली तेमनी दृष्टि पण जाणे शून्य होय तेम शुं नथी नमती ? अर्थात् नमे बे. ६७ विशेषार्थ- श्रा प्रकारे निर्दोषसूत्रोना समूहमां कथन करेसी, नियुक्ति, नाष्य, वृत्ति विगेरेथी तथा सारी युक्ति अने सत्प्रकरणथी निष्कलंक निश्चय नयवडे सिद्ध करेली, लगवंतनी प्र. तिमा सजन पुरुषोने श्राराध्य होवाथी प्रमाणरूप में; अने अंधपरंपराथी हणाइ गयेली उर्मति लोकोनी युक्ति तेमां घटती नथी, कारण के युक्तिना नाशनी परंपरामा युक्तिनुं ग्रहण असिष थाय. जे. वली जगवंतनी प्रतिमाना दर्शनथी वंचित श्रयेली तेमनी दृष्टि पण जाणे शून्य होय तेम लम्या करे बे. ते उपर त्रण काव्य वे. यथा तिलकयुतललाटत्राजमानाः वनाग्यांकुरमिवसमुदितं दर्शयंते जनानां । स्फुरदगुरुजमाला सौरनोफारसाराः; कृतजिनवरपूजा देवरूपा महेन्याः ॥१॥ नावार्थ- तिलकवाला ललाटथी शोलता, तेमज विकस्वर एवी अगुरु चंदननी मालानी सुगंधीना उद्गारथी उत्तम एवा
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy