________________
(ए) यज्ञ करेज नहीं, कारणके व्रतधारीउने कुशास्त्रनी स्थिति त्याग करवा योग्य होय . ६७
विशेषार्थ-श्रीवीर परमात्माना पिता सिद्धार्थ राजा श्रीपार्श्वनाथ जगवंतना मुनियोना उपासक हता एम श्रीश्राचारांग सूत्रमा कथन करेल , तेमणे प्रौपदीना चरित्रना सामर्थ्यथी दस दीवस सुधी मोटा महोत्सवपूर्वक श्रीजिनपूजा करी हती. ते सिद्धार्थ राजानी यज्ञ करवानी प्रौढता अभ्युदयवाली अने धर्मयुक्त ने, एम श्री कल्पसूत्रमा वर्णन करेल , ते यज्ञ श्री जिनश्वर नगवाननी पूजाविना लोक प्रसिद्ध यज्ञ होश शके नही, कारणके व्रतधारी कुशास्त्रमा वर्णन करेला विधिमार्गनो त्याग करे बे. कुशास्त्रमा वर्णवेला याग हिंसामय , ते पार्श्वनाथ जगवंतनो उपासक श्रावक एवा याग कदापि करेज नही. एम कल्पसूत्रनो पाउ . यथा “ जाए अदाए अजाए" इत्यादि प्रसिद्ध बे. याग एटले देवपूजा जाणवी. परम श्रावक सिद्धार्थ राजाने जिनपूजाश्रीज श्रमणोपासकपणुं ने, एम श्री श्राचारांग सूत्रमा कहेलुं . ते राजा अनशन करी अच्युत देवलोकमां देवता थइ, महाविदेहमा मुक्ति पामशे. ६७ ___ सर्व ढुंपकोना मतनो उपसंहार करी कहे. इत्येवं शुचिसूत्रवृंदविदिता नियुक्तिनाष्यादिभिः, सन्न्यायेन समर्थिता च जगवन्मूर्तिः प्रमाणं सतां । युक्तिस्त्वंधपरंपराश्रयहता माजाघटीदुर्डिया, मेतदर्शनवंचिता गपि किं शून्येव न चाम्यति॥६॥