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( ६४ ) भी है कि, एक दूसरेके ऊपर अपूर्व प्रीति रखनेवाले सहोदर भाई अथवा मित्रोंमें स्त्री ही एक ऐसी वस्तु है कि जो भेद उत्पन्न कर देती है । कितना ही मजबूत ताला क्यों न हो चाबीरूप स्त्री अन्दर प्रवेश करते ही सब खोल देती है ।
निदान दोनोंमें जब वादी प्रतिवादीकी भांति बहुत कलह उपस्थित हुआ, तब खलासियोंने कहा कि, "अभी आप स्वस्थ रहिए, दो दिन बाद अपना जहाज सुवर्णकूल नामक बन्दर पर पहुँचगा, वहां कोई बुद्धिमान पुरुषों से इस बातका निर्णय कराइएगा," यह सुन शंखदत्त चुप हो रहा। श्रीदत्त मनमें विचार करने लगा कि "इस कन्याको शंखदत्तने सचेतन की है अतएव न्याय होने पर यह कन्या इसीको मिलेगी । इसलिए वह अवसर आनेके पहिले ही मैं कोई उपाय करूं," ।
यह सोचकर दुष्टबुद्धि श्रीदत्तने शंखदत्तके ऊपर अपना पूर्ण विश्वास जमाया और कुछ देरके पश्चात् उसे लेकर पुनः छज्जे (डेक) में आ बैठा और कहने लगा कि "मित्र! देव तो, यह आठ मुंहका मत्स्य जा रहा है," यह सुन ज्योंही कौतुकवश शंखदत्त झुक कर देखने लगा त्यौही मित्र श्रीदत्तने शत्रुकी भांति उसे धक्का देकर समुद्रमें डाल दिया। धिक्कार है ऐसी स्त्रीको ! जिसके कारण श्रेष्ठ मनुष्य भी मित्र-द्रोही हो जाते हैं । ऐसी स्त्रीका मुंह सुंदर होते हुए भी देखने के योग्य नहीं । नीच ऐसा श्रीदत्त इष्टकार्य पूर्ण हो जानेसे मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ,