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परन्तु कपटी प्रीति दिखानेके हेतु प्रातःकाल होते ही बनावटी खेद करता हुआ चिल्लाने लगा कि, हाय ! हाय !! मेरे मित्रका न जाने क्या होगया, कहां चला गया इत्यादि" अंतमें दो दिन बाद वह सुवर्णकूल बंदर पहुंचा । वहां जाकर उसने राजाको बडे २ हाथी भेट किये । राजाने प्रसन्न होकर उसका आदर पूर्वक स्वागत किया तथा हाथियोंका बहुतसा मूल्य देकर बन्दरका कर भी माफ किया। श्रीदत्तने वहां रह कर खूब व्यापार करना शुरू किया तथा उस कन्याके साथ विवाह करने के लिये लन निश्चित करके विवाहकी सामग्रियां तैयार करवाने लगा। वह नित्य राजसभामें जाया करता था। वहां राजाकी एक अत्यन्त रूपवती चामरधारिणीको देख कर एक मनुष्यसे उसका वर्णन पूछा। उस मनुष्यने कहा कि, “यह राजाकी आश्रित सुवर्णरेखा नामक प्रख्यात वेश्या है, अधै लक्ष ( ५०००० ) द्रव्य लिये सिवाय किसीसे बात भी नहीं करती है ।" यह सुन श्रीदत्तन उस वेश्याको अर्धलक्ष द्रव्य देना स्वीकार किया तथा उसे व उस कन्याको रथमें बिठाकर बनमें गया। वहां शांति पूर्वक बैठ कर एक तरफ उस कन्याको तथा एक तरफ उस वेश्याको बिठा कर हास्य-भरी बातें करने लगा । इतने ही में एक बन्दर चतुराईसे अनेक बन्दरियों के साथ काम-क्रीडा करता हुआ वहां आया। श्रीदत्तने उसे देख कर सुवर्णरेखासे पूछा कि, "क्या यह सब बन्दरियां इस बन्दरकी स्त्रियां ही