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तथा दीर्घ प्रयत्न दोनों का योग होने पर द्रव्य लाभ हो उसमें आश्चर्य ही क्या है ? कुछ कालके अनन्तर उनने बहुतसा किराना खरीदा तथा अनेकों जहाज भरके वहांसे सुख पूर्वक विदा हुए। एक समय दोनों जहाज के छज्जे ( डेक ) में बैठे थे कि समुद्र में तैरती हुई एक संदूक पर उनकी दृष्टि पडी । शीघ्रही उन्होंने मल्लाहों द्वारा उसे बाहर निकलवायी 'उसके अन्दरसे जो कुछ निकलेगा उसे आधा २ बांट लेंगे' यह निश्रय करके संदूक खोली, उसमें से नीम के पत्तोंमें लपेटी हुई एक नीलवर्णकी कन्या निकली जिसे देख कर सबको आश्चर्य हुआ ।
शंखदत्त बोला कि, "इस कन्याको किसी दुष्ट सर्पने काटा है इससे किसीने इस जलमें बहा दी है. " यह कह तुरन्त उसने मंत्र द्वारा उस पर जल छिड़कर सचेतन की व हर्षसे कहने लगा। कि, "मैंने इसे जीवित की है इसलिये मेनकाके समान इस सुन्दररमणीसे मैं ही विवाह करूंगा" यह सुन श्रीदत्त भी कहने लगा कि, "शंखदत्त ! ऐसा न कहो, कारण कि मैंने पहिले ही से कहा था कि 'आधा आधा भाग बांट लेंगे, तदनुसार इस कन्याको मै लूंगा तथा तेरे आधे भाग के बदले तुझे द्रव्य दे दूंगा"
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जिस भांति मदनफल ( मेनफल ) के खानेसे बमन हो जाता है उसी तरह ऊपर लिखे अनुसार विवाद से दोनों जनोंन स्त्रीसंभोग अभिलाषासे पारस्परिक प्रीति त्याग दी। कहा