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________________ .-समुद्री तानु १९ गाउदुगुच्चाई तयट्ठभागरुंदाइ पउमवेईए । देसूणदुजाअणवरवणाइ परिमंडिअसिराहिं ।। १५ ।। बेईसमेण महया गवरककटएण संपरित्ताहि । अट्ठारसूणचउभत्तपरिहिदारंतराहिं च ।। १६ ।। अटुच चउसुवित्थर दुपाससकोसकुड्डदाराहि । पुवाइमहद्विअदेवदारविजयाइनामाहि ॥ १७ ॥ "णाणामणिमयदेहलि-कवाडपरिघाइदारसाहाहि । जगईहिं ते सव्वे, दीवादहिणा परिक्खित्ता ।। १८॥ शार्थ:क्यसमईहिं-बाभय... अटुच्चाहिं -413 योन या णिअणिअ-पातपातान: . . बारस चउ-मा२ योन मने यार येन दीवादहिमज्झ-दी५ समुद्रोनी मध्ये मूले उवरि-भूगमा भने ५२ गणिय-मखु, यस!. रूंदाहि-विस्ता२-५णावणी मूलाहिं-भूmiri. विस्थारदुर्ग में विस्तार चूला-३नी यूति विसेपा-विष, मामा गिरि-भे३ वगैरे पति। उस्सेहविभत्त-या 43 alndi । कूडाइ-५८, भूमिट मा सिंओ-क्षय, हानि . . तुल्ल-तुझ्य, समान :चौम्यय, वृद्धि विक्खम- विलना, विस्तान हाइ-थाय करणाहि-४२६वाजी, गणितवाणी इअ-मे प्रमाणे गाउद्ग-मे ॥ देसूणदुजायण-४४ न्यून मे योन उच्चाइ-या वरवणाई-उत्तम बना तयठभाग-तेनी २08मा लागे परिमंडिअ-परिभाउत, शालित रुंदाइ-विस्तारवाजी सिराहि-मस्त, समागवाणी पउमवेईए-५मवविधा
SR No.022175
Book TitleLaghu Kshetra Samsas Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrashreeji
PublisherKumudchandra Jesingbhai Vora
Publication Year1977
Total Pages510
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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