SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक्त्व प्रकरणम् उदायन राजा की कथा भूल हुई है? जिससे कि आप नहीं चल रहे हैं? हे प्रभो! आपके लिये ही मैंने यह सारा उपक्रम किया है। उसीका यह विपरीत फल क्या आप मुझ किंकर को दे रहे हैं? तब शासन देवी ने प्रतिमा के मुख में अवतीर्ण होकर कहा-राजन्! तुम्हारे सिवाय अन्य किसी की इस प्रकार की भक्ति नहीं हो सकती। पर तुम्हारा नगर कुछ समय बाद धूल की वृष्टि से युक्त हो जायगा। उस स्थल पर मुझे ले जाने का आग्रह मत करो। ___ देवता के कथन से राजा ने उस प्रतिमा की विशेष रूप से तीर्थ की तरह पूजा-अर्चना-स्तुति करके, प्रणाम करके अपने नगर लौटने लगा। कुछ समय के प्रयाण के बाद वर्षाकाल समीप आ जाने से राजा को बीच मार्ग में ही रुकना पड़ा। सेना अन्यत्र गरज रही थी। श्यामवर्णी बादल इधर गरज रहे थे। जलरहित प्रदेश को इन्द्र के पुरस्कार रूप जल की प्राप्ति हो रही थी। विद्युत् आकाश में कृपाण की तरह चमक रही थी। बरसात की धारा बाणों की वर्षा की तरह एक पर एक की तरह पड़ रही थी। क्षात्र धर्म से अनभिज्ञ योद्धा की तरह नष्ट होते हुए मनुष्यों का भी वृष्टि हनन कर रही थी। उस वर्षा के भय से कोई भी अच्छे-अच्छे वस्त्रों को धारण नहीं कर रहा था। श्रीमंत लोग भी जीर्ण वस्त्रों में नगर में संचार कर रहे थे। चलने में अक्षम होने से मार्ग शून्य हो गये थे। पाँवों से एक कदम जाने के लिए भी कोई समर्थ नहीं था। लोगों से सर्वस्व ग्रहणकर अत्यन्त स्वर्ण लक्ष्मी से उन्मत्त बनी नदी भी तब समुद्र में डाल रही थी। [इतनी जलवृष्टि हुई कि जिसमें लोगों का सर्वस्व बह रहा था।] स्थान-स्थान पर लोगों से धन ग्रहण किया जा रहा था। मार्ग में रक्षा के साधनभूत पोतवाहक के लिए दिये गये पण्य को भी छीना जा रहा था। कीचड़ से पाँव को खींचकर निकालना बन्धन से मुक्त होने के समान दुर्दम था। प्रधान मनुष्य भी शिघ्र ही भूमि पर गिराये जा रहे थे। वर्षाकाल कृत इस असमंजस को देखकर राजा ने सैन्य का निवेशकर वहाँ नया नगर स्थापित किया। राजा ने उस नगर के चारों ओर की दशा देख ली थी, अतः चोर, लुटेरों के भय से बचने के लिए उन्हें धोखा देने के लिए नगर के चारों ओर धूली का कोट बनवाया। प्रद्योत नृप को वहाँ के कारागार में डाल दिया गया। राजनीति में नीतिज्ञ उदायन ने भोजन-वस्त्र आदि से उसका सम्मान भी किया। पर्युषण पर्व आ जाने के कारण परमार्हती राजा उदायन ने उपवास धारण किया। तब रसोइये ने राजा प्रद्योत से पूछा कि आपको क्या भोजन चाहिए? प्रद्योत ने पूछा-आज मुझसे पूछने का क्या कारण है? तब रसोइये ने कहापर्युषण पर्व होने से स्वामी अंतःपुर के परिवार सहित उपवास की तपस्या से युक्त हैं। आप सदा ही राजपरिवार के योग्य बने हुए भोजन को ग्रहण करते हैं। आज राजपरिवार के उपवास होने से मैं आपकी भोजन की इच्छा जानने के लिए आया हूँ। यह सुनकर प्रद्योत मन ही मन भयभीत हुआ कि कहीं यह आहार में विष देकर मुझे मार न डाले। तब उस रसोइये के सामने नाटक करते हुए प्रद्योत ने कहा-अहो! मेरा इतना प्रमाद है कि मुझे पर्युषण पर्व का भी भान नहीं रहा। मेरे माता-पिता भी परमाहती थे। अतः मैं भी शुभ भावों के साथ आज उपवास करूँगा। रसोइये ने प्रद्योत द्वारा कथित सारी बातें राजा उदायन को बतायीं। राजा ने कहा-मैं इस प्रकार के श्रावक को अच्छी तरह जानता हूँ। पर इसके प्रति वैरभाव त्यागे बिना मैं पर्युषण पर्व का प्रतिक्रमण कैसे करूँगा? बिना कषाय छोड़े कषायी मनुष्य जन्मांतर में भी प्रायः अपनी दुश्मनी को बढ़ाता ही है। विवेकियों द्वारा कषायों का निग्रह किया जाना चाहिए। अन्यथा वे संसार के नये हेतुओं को बढ़ानेवाले होंगे। आध्यात्मिक पर्यों पर भी जिसकी कषाय की अग्नि शांत नहीं होती, वह अभवी हो या दूरभवी निश्चय ही पुनः पुनः गर्भावास को धारण करता है। प्रशान्त कषायवाला भी पुनर्भव में उन कषायों द्वारा पतित होता है। अतः लोगों को लवमात्र भी कषाय पर विश्वास नहीं करना चाहिए। क्षणिक अग्नि जैसे शरीर को जला देती है वैसे ही कषाय भी आत्मा के सद्गुणों को जलाते हैं। आर्हत् धर्म में उपेक्षा नहीं 18 -
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy