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________________ सम्यक्त्व प्रकरणम् सुदर्शन शेठ की कथा अतः मैं क्या करूँ? लेकिन आपको मेरी कसम है, आप मेरा यह गुप्त भेद प्रकाशित न करें। अन्यथा लोक में मेरा परिहास होगा। तब विरक्त होकर कपिला ने भी कहा-आप मेरी भी यह बात लोगों में प्रकाशित मत करना । हे भद्र! अब शीघ्र जाओ! सुखी होओ। इस प्रकार सुदर्शन भी यम के घर की तरह उसके घर से निकला। अगर जीवन को दाँव पर भी लगाना पड़े तो भी शील की ही रक्षा करनी चाहिए। सुदर्शन ने मन में विचार किया कि यह अकार्य में उद्यत नारी कपट की जननी तथा अविवेक की निधान है। आज मैं इस पिशाचिनी द्वारा एकान्त का लाभ उठाकर छला गया हूँ। अतः आज के बाद मैं किसी के भी घर में एकाकी नहीं जाऊँगा। इस प्रकार वह पिशाचिनी व शाकिनी आदि से दूर रहने की तरह पर स्त्रियों से दूर रहता हुआ, उनसे काँपता हुआ अपने शील का शुद्ध मति से पालन करने लगा। ___एक बार बसन्त का समय आने पर राजा अपने अंतःपुर के साथ उद्यान सम्पदा का लुफ्त (आनंद) उठाने के लिए महान ऐश्वर्य के साथ निकला। सर्व रानियों में शिरोमणि अभया महारानी भी कपिला के साथ शिबिका में आरूढ़ होकर निकली। मनोरमा सेठानी भी अपने छः पत्रों के साथ इन्द्राणी की तरह शिबिका रूपी विमान में आरूढ होकर उद्यान की ओर प्रस्थान किया। श्रेष्ठी सुदर्शन भी चले और कपिल भी चला। ज्यादा क्या कहा जाय? केवल स्थावर ही वहाँ न मनोरमा को देखकर कपिला ने अभया से कहा-देवी! वृक्षसमूहों के बीच कल्पलता की तरह यह स्त्री कौन है? रानी ने कहा-सुदर्शन की प्रिया महासती मनोरमा को तू नहीं जानती? कपिला ने कहा-अगर यह महासती है? तो इसके ये पुत्र कैसे? रानी ने कहा-तूं यह क्या बोल रही है? तब उसने कहा-देवी! इसका भी कारण है। मेरे द्वारा परीक्षा की गयी है कि सुदर्शन नपुंसक है। अभया ने कहा-हे अभिज्ञा! तपस्विनी तुम ठगी गयी हो। सुदर्शन तुम्हारे जैसी परस्त्रियों के लिए ही नपुंसक है। कपिला ने विलक्षणतापूर्वक हंसकर असूया से कहा-अगर आप भी उसके साथ रमण करेंगी, तो ज्ञात हो जायगा। अभया ने भी कहा-सखी! अगर मैंने इसके साथ रमण नहीं किया, तो मैं भी अभया नहीं। फिर मैं अग्नि में प्रवेश करूँगी। इस प्रकार बातें करती हुई वे दोनों उद्यान में जाकर यथा सुख चिर काल तक क्रीड़ा करके स्व-स्व स्थान को चली गयी। महल में जाकर रानी ने अपनी धाय-माँ को अपनी प्रतिज्ञा बतायी। धात्री ने कहा-पुत्री! तुम्हारी प्रतिज्ञा ठीक नहीं है। चाहे पृथ्वी उल्टी हो जाय, सागर का पानी सूख जाय, ज्योतिषगण अपने स्थान से च्युत हो जायँ। पर सुदर्शन अपने शील का त्याग नहीं करेगा। वह परनारी के लिए सहोदर के समान है तथा महात्मा है। अशोक वृक्ष की तरह तुम्हारी यह प्रतिज्ञा फलित नहीं होगी। अभया ने कहाहे माते! अगर ऐसा भी है, तो भी एक बार तुम उसको यहाँ बुलालो। आगे मैं सब कुछ संभाल लूँगी। उसके आग्रह करने पर पण्डिता ने कहा-हे वत्से! वह पर्वदिनों में कायोत्सर्ग करके किसी भी शून्य आगार आदि में स्थित रहता है। अतः इसको बच्चे की तरह पीठपर उठाकर किसी तरह ले आऊँगी। किसी भी बहाने से यहाँ प्रवेश करवा लूँगी। फिर वह धात्री उस दिन से लेकर रोज सुदर्शन के समान वर्ण रूप वाली प्रतिमा को कपड़े से ढककर पीठ पर उठा कर लाने लगी। उसे देखते ही संभ्रम होते हुए दासियों ने पूछा कि यह क्या है? तो उसने कहा कि देवी के पूजने के लिए कपड़े से ढकी हुई यह यक्ष प्रतिमा है। रोज प्रतिमा ले जाते देखकर उन दासियों को विश्वास हो गया। इस प्रकार धात्री ने अपनी चतुराई से कुञ्चकियों का विश्वास जीत लिया। कुछ ही दिनों के अनन्तर कौमुदी महोत्सव आया। नाट्य भूमि पर नर्तकियों की क्रीड़ा से जगज्जन प्रमुदित हुए। अगले दिन राजा ने पटह बजवाया कि राजा उद्यान में क्रीड़ा करने के लिए अन्तःपुर सहित जायेंगे। राजा की आज्ञा से सम्पूर्ण नागरिकों को उच्चश्रृंगार व आडम्बर के साथ सारभूत विभूतियों से युक्त होकर वहाँ आना है। सुदर्शन उस पटह को सुनकर खिन्न मन से विचार करने लगा-कल कार्तिक चौमासी पक्खी होगी। राजा 102
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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