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सुदर्शन शेठ की कथा
सम्यक्त्व प्रकरणम् स्वामी सेठ की पत्नी के गर्भ में पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। दो मास बीतने पर सेठानी मन में अर्हत् साधु का संगम तथा पूजा आदि करने का मनोरथ उत्पन्न हुआ। सेठ ने उसके आनन्ददायी मनोरथ पूर्ण करवाये। दिन पूर्ण होने पर सेठानी ने पुत्र को जन्म दिया। दास-दासियों ने सेठ को पुत्र जन्म की बधाई दी। सेठ ने भी बड़प्पन के साथ पुत्र-जन्म का उत्सव मनाया। विशाल जन समूह के समक्ष प्रीतिपूर्वक उसका नाम सुदर्शन रखा। क्रम से वृद्धि को प्राप्त होते हुए उसने संपूर्ण कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया। नाम व अर्थ की एकरूपता वाली कन्या मनोरमा के साथ उसका विवाह किया गया। सुदर्शन उसके साथ तीन लोकों का सुख भोगने लगा। वह भी श्रीकृष्ण के समान सुदर्शन के प्यार को पाकर आनन्दित थी ।
एक दिन सुदर्शन के पिता को वैराग्य सम्पदा के वशीभूत होकर भव पास को छोडकर संयम साम्राज्य पाने की इच्छा हुई। वरिष्ठ नागरिकों नगर अध्यक्षों को अपने घर बुलाकर वस्त्र, भोजन, ताम्बूल आदि के द्वारा उनका यथोचित सन्मान किया। अपने अभिप्राय को बताकर राजा आदि गणमान्य व्यक्तियों को विदित कराकर उन्होंने अपने पुत्र सुदर्शन को अपने पद पर स्थापित किया । श्रेय कार्यों की निधि रूपी श्वेत वस्त्रधारी आचार्य की सन्निधि में स्वयं श्रेष्ठि ने संयम ऐश्वर्य को यथोक्त विधि द्वारा ग्रहण किया ।
अब सुदर्शन विशेष रूप से राजमान्य हो गया। पिता के गुणों की साम्यता होने से नगरी में भी वह सभी गों द्वारा माना जाने लगा। उसी नगरी में राजमान्य पुराहित का पुत्र कपिल था। जन्म से ही कपिल और सुदर्शन साथ-साथ बड़े हुए, साथ-साथ पढ़े। उनकी परस्पर सोहार्द्रता जन्मजात थी ।
श्रवण मात्र
किसी दिन कपिल को उसकी पत्नी कपिला ने कहा- स्वामी! आप काम के समय मूढमति वाले होकर कहाँ बैठ जाते हैं? उसने कहा - सुदर्शन के पास बैठता हूँ । कपिला ने पुनः पूछा- यह सुदर्शन कौन है ? कपिल ने कहाक्या तुम सुदर्शन को नहीं जानती ? हे प्रिये! सुदर्शन किसे कहते हैं - यह सावधान होकर सुनो। उसके गुणों के तुम्हारा जीवन कृतार्थ हो जायगा । वह तेज में सूर्य के समान, सौम्यता में शशि के समान, रूप में कामदेव के समान है। पुष्कल वैभव की शोभा से युक्त उसके जैसा सौभाग्य अन्य किसी का नहीं है। समग्र गुणों के राजा - स्वरूप एक मात्र शील गुण को तीन जगत में कोई जीत नहीं सकता, तो अन्य अन्य गुणों का तो क्याक्या वर्णन करूँ ? ब्रह्मा ने उसको समग्र गुणमय किया है, तो हमारे जैसे धृष्ट जड़ प्रज्ञावालों द्वारा उसका वर्णन कैसे किया जाय ?
कपिला सुदर्शन के गुणों का श्रवण करती हुई उस में अनुरक्त हो गयी। उसके संगम के किसी भी उपाय को सोचते हुए वह नित्य व्यग्र रहने लगी। एक बार कपिल किसी राज्य कार्य से नगर से बाहर गया। तब कपिला ने सुदर्शन के पास जाकर मायापूर्वक कहा- किसी शारीरिक कारण से आपके मित्र आपके पास नहीं आ सके और आपके बिना उनका मन भी नहीं लगता । अतः मुझे आपको बुलाने के लिए भेजा है। सुदर्शन ने कहा- हे भद्रे ! मुझे ज्ञात नहीं था। मैं बिना देर किये आपके ही साथ आपके घर चलता हूँ। वहाँ जाकर पूछा- कपिल कहाँ है? उसने कहा- मध्य से मध्य खण्ड में है। सुदर्शन बिना किसी कल्पना के मध्यखण्ड में चला गया । कपिला भी बाहरी द्वार बन्दकर वहाँ आयी और सुदर्शन को कहा- आपका मित्र गाँव के बाहर गया है। मैं कामबाण से पीड़ित हूँ। जब से कपिल ने आपके सौभाग्य आदि गुणों का बखान किया है, तभी से आज तक मैं एकमात्र आपका ही देवता की तरह ध्यान करती हूँ। मैंने आज आपको छलपूर्वक प्राप्त किया है। अब कृपा मेघ बरसाओ। अपने संगम रूपी औषधि से मेरे कामज्वर को शांत करो।
सुदर्शन ने अपने शील की रक्षा करने के लिए औत्पत्तिकी बुद्धि से विचारकर कपिला को कहा- हे भद्रे ! तुम किसको अच्छी नहीं लगती? तुम्हारे जैसी स्त्री की कौन इच्छा नहीं करता? लेकिन दैव वशात मुझमें नपुंसकता है,
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