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श्रद्धान-जल्प-पट्टकः गीतार्थनी निश्रा विना जे एकाकी मलिनवेष मात्रइं विचरइं छइं, पोतइं लोक मेलवी देशना दिइ छइ अने गीतार्थनी देशनाइं नावे, सझाय मांडलि प्रमुख न साचवइ छइ, गीतार्थनई नित्यइं, खामणां वांदणां आहार निमन्त्रण प्रमुख व्यवहार न साचवइ, तेह गीतार्थना कीधा शय्यातर प्रमुख न साचवइ, अगोतार्थ थका महानिशीथादिकना अर्थ प्रकाशइ, तथा वांचइ, तथा तत्त्वार्थादिक महाशास्त्र वांची समा मेलवइ, वांदणा देवरावे तेह परमार्थइ गीतार्थ प्रत्यनीकज होइ अण सरतइ निश्रापणुं कहइ ते सर्व सम्यक्त्व रहित जाणवा। जे मार्टि लिंगाचार ज्ञान मात्र ज्ञान नही मलिन बेष मात्रइं, क्रियावंत नही ते बहु माई मुसावाई व्यवहारादिक ग्रंथइं कह्या छ, एहवा जे बाह्य आचरण प्रशंसइ तेहनी देशना सांभलइ छइ । तेनइ गुणवंत पणुं सद्दहइ तेहनइं माठां फल छइ । यदुक्त "पञ्चाशके"..
तेसि बहुमारणेणं उम्मग्गाणुमोअणाअणिठफला। तहा तित्थयराणाठिएसु जुत्तो त्थ बहुमाणो ॥१॥
एतले पांच बोलना स्वामी गुरु गच्छ गीतार्थ निपेक्ष प्रवर्ते छइ ते जाणिवा इति भावः ।।