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१०८ बोल संग्रह
(८९ ) जलचारणादिक लब्धिमंत यतिनइं जलादिकमां चालतो जलादिक जीवनो घात जो न हुई तो सर्वलब्धिसंपन्न केवलीनई त किम हुई एहवुकहई छई ते न घटइं-जे माटई लब्धि फल सर्व केवलीनई छई तो पणि लब्धिप्रयोग नथी ॥ ८९ ॥
( ९० ) घातिकर्मक्षयथी ऊपनो जीवरक्षाहेतु लब्धि प्रयुज्या विना ज केवलीनइं हुई एहवुमान'ई छई तेहनइ मतई चउदमइ गुण 'ठाणइ मशकादिकत्तक मशकादिवध मान्या छई ते पणि न मिलइ, नहीं तो तेरमइ गुणठाणइं पणि तेहवो ते मान्यो जोइंइ ॥ ९०॥
( ९१ ) द्रव्य हिंसाइं केवलीनई १८ दोषरहितपणुन घटइं एहवु कहइ छइ तेहनाई मतइं द्रव्यपरिग्रह इच्छतां पणि १८ दोषरहित पणुन मिलई ॥ ९१ ।।
प्राणातिपात मृषावादादिक छद्मस्थ लिंग मोहनीय अनाभोगमां एकई विना न हुई ते माटइं॰बारमई गुणठाणई मृषा भाषा कर्मग्रंथादिकमां कही छइं स संभावनारूढ जाणवी, एहवं कहई छई तेहनइं पूछवुजे द्रव्यभाव विना संभावनांरूढ त्रीजो किहां कह्यो छइ कालशूकरिकनई कल्पित हिंसानी परि ए संभावनारूढ मृषावाद लेवो एहवु लिख्यु छई तेहनइं अनुसारइं तो अंतरंग भावमृषावाद ज बारमइ गुणठाणइ आवइ 4९२॥ ...
प्रतिलेपना प्रमार्जनादिय क्रिया क्षुद्रजंतु भयोलदकपणता