SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७ १०८ बोल संग्रह (८९ ) जलचारणादिक लब्धिमंत यतिनइं जलादिकमां चालतो जलादिक जीवनो घात जो न हुई तो सर्वलब्धिसंपन्न केवलीनई त किम हुई एहवुकहई छई ते न घटइं-जे माटई लब्धि फल सर्व केवलीनई छई तो पणि लब्धिप्रयोग नथी ॥ ८९ ॥ ( ९० ) घातिकर्मक्षयथी ऊपनो जीवरक्षाहेतु लब्धि प्रयुज्या विना ज केवलीनइं हुई एहवुमान'ई छई तेहनइ मतई चउदमइ गुण 'ठाणइ मशकादिकत्तक मशकादिवध मान्या छई ते पणि न मिलइ, नहीं तो तेरमइ गुणठाणइं पणि तेहवो ते मान्यो जोइंइ ॥ ९०॥ ( ९१ ) द्रव्य हिंसाइं केवलीनई १८ दोषरहितपणुन घटइं एहवु कहइ छइ तेहनाई मतइं द्रव्यपरिग्रह इच्छतां पणि १८ दोषरहित पणुन मिलई ॥ ९१ ।। प्राणातिपात मृषावादादिक छद्मस्थ लिंग मोहनीय अनाभोगमां एकई विना न हुई ते माटइं॰बारमई गुणठाणई मृषा भाषा कर्मग्रंथादिकमां कही छइं स संभावनारूढ जाणवी, एहवं कहई छई तेहनइं पूछवुजे द्रव्यभाव विना संभावनांरूढ त्रीजो किहां कह्यो छइ कालशूकरिकनई कल्पित हिंसानी परि ए संभावनारूढ मृषावाद लेवो एहवु लिख्यु छई तेहनइं अनुसारइं तो अंतरंग भावमृषावाद ज बारमइ गुणठाणइ आवइ 4९२॥ ... प्रतिलेपना प्रमार्जनादिय क्रिया क्षुद्रजंतु भयोलदकपणता
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy