________________
२६
१०८ बोल संग्रह
अथवा ओसरिया ज हुई पणि केवलीनो क्रियाई प्ररी क्रिया न करई, जे माटई इम कहतां जीवाकुल भूमि देखी केवलीनइं उल्लंघनादि व्यापार पन्नवणासूत्रमां कहिओ छइं ते न मिलइं तथा वस्त्रप्रतिलेखना पणि न मिलइ ।। ८५ ।।
अभयदयाणं ए सर्वथा भय न ऊपज
( ८६ )
सूत्रनी मेलइं भगवंतना शरीरथी जीवनई वें कहड छड तेो न मिलइ,
जे माटइं भगवंत वस्त्रादिकथी जीव अलगा मूकई तेहनइं भय विना अपसरण न संभवइ तथा 'अभयदयाणं' ए वचनइं केवलीना शरीरथी कोइनइ भय न ऊपजइ एहवु कल्पिइं तो 'मंता मतिमभयं विदित्ता' इत्यादिक सूत्रनी मेलइं यतिमात्रना शरीरथी जीवनई भय ऊपजवो न घटइं ॥ ८६ ॥
( ८७ )
श्रीवर्धमानने देखी हाली नाठो तिहां कोइ इम कल्पना करड़ छइ जे तिहां हालीना योग कारण पणि भगवंतना योग कारण नहीं तो अतिखोटु, जे माटइ 'भगवंत दट्ठूण धमधमेइ' एह व्यवहारचूर्णि कहिउं छई ते हनई अनुसार भगवंतना योगज तिहां कारण जणाईं छई तथा अन्यकर्तृक भय तेरमई गुणठाणई हुई तो चउदमा गुणठाणानी परि अन्यकर्त्ती क हिंसा पणि हुई जोइइ तो तो स्वमंत विरुद्ध ॥ ८७ ॥
( ८८ )
'सव्विजिआणमहिंसा' इत्यादिक सूत्रनी मेलइं जे केवलीनई अवश्यभाविनी हिंसा ऊथापई छई तेहनई मतह हिंसाइ दोस सुता इत्यादिक सूत्रनी मेलई सामान्य साधुन पणि तो ऊयाची जोईई ।। ८८