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________________ २४ १०८ बोल संग्रह (८०) प्रत्युताऽन्निका " तस्मात्साक्षाज्जीवघातलक्षणारम्भो नान्तक्रियायाः प्रतिबन्धकः, तदभावेऽन्तक्रियाया अभणनात् ( अन्यका ?) पुत्राचार्य - गजसुकुमालादिदृष्टान्तेन सत्यामपि जीवविराधनायां केवलज्ञानान्तक्रिययोर्जायमानत्वात् कुतस्तत्प्रतिबन्धकत्वशङ्काऽपि " [गा० २९ वृत्तिः ] एह सर्वज्ञशतकमां लिख्यु छइं ते प्रकट स्वमतविरुद्ध ॥ ८० ॥ ( ८१ ) शैश्यवस्थायां कायसंस्पर्शन मशकादीनां प्राणत्यागेऽपि पञ्चधोपादानकारणयोगाभावान्नास्ति बन्ध:, उपशान्तक्षीणमोहसयोगिनां स्थितिनिमित्तकषायोदयाभावात् सामयिककर्मबन्धः इत्यादि, आचारांग सूत्रनी वृत्ति कहिउं छइं तथा “सेलेसी पडिवन्नस्स जे ( सत्ता सन्ना ? ) फरिसं पप्प उद्दायंति मगादो तत्थ कम्मबंधो णत्थि सजोगिस्स कम्मबंधो दो समया" एहवु आचारांगसूत्रनी चूर्णिमां कहिउं छई तिहां चउदमई गुणठाण योग नथी ते माटई तिहां केवलिक क मशकादिवध न हुई पणि मशकादिकर्तृ क ज हुई, तद्गतोपादानकर्मबन्धकार्यकारणभावप्रपंचनई अथि ए ग्रंथ छई एहवी कल्पना करइ छइ ते खोटी । जे माटई सामान्यथी साधुनई अवश्यभावी जीवघातनइं अधिकारइं ज ए ग्रंथ चाल्यो छइं । तथा चउद (स) मई गुणठाणइं मशकादिकर्तृकज मशकादिघात कहिई तो पहिला पणि तेवोज ते हुई, युक्ति सरिखी छइ ते माटइ मोहनीय कर्म हुई तिहां तां जीवघातकर्ता कहिई एह वचन पणि प्रमाणिक नहीं, जे
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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