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१०८ बोल संग्रह
( ७३ )
वस्त्रइं गलिउं ज पाणी पीवु इहां पीवानो सावद्यपणा माइं विधि नहि पण गलवानो ज विधि एहवु कहइ छइ ते न मिलई,
जे माटइं गालिडं पाणि पणि शस्त्र कहिउं छइं यतः - "उस्सिं चणगालणधोवणे य उवगरणमत्तकोसभंडे य । बायर. आउक्काए, एयं तु समासओ सत्थं ॥" आचारांग सूत्रनिर्युक्तौ ॥ ७३ ॥ [ श्र. १. नि. गा. ११३]
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( ७४ )
द्रव्यहिंसाई द्रव्यथी हिसानु पच्चक्खाण भाजई एहव कहइं छइं ते न घटइ, जे माटइं धर्मोपकरण राखतां द्रव्यथी परिग्रहनु पच्चक्खाण भाजई एहवु दिगंबरई कहिउं छई तिहां विशेषावश्यक द्रव्य क्षेत्र - कालथी भावनुज पच्चक्खाण हुई पणि केवल द्रव्यथी भंग न हुइ ए रीतई समाधान करिडं - छइं ।। ७४ ।।
( ७५ )
श्रावक प्रतिक्रमणसूत्रवृत्तिमां हिसानी चउभंगीमां द्रव्यथी तथा भावथी न हिंसा मनोवाक्कायशुद्ध साधुनई ए भांगो कहिओ छ तेहनो स्वामी तेरमा गुणठाणानो धणी ज जे फलावई छई अनई चउदमा गुणठाणानो धणी निषेधइं छई मनवचनकाययोग विना तेहथी शुद्ध न कहवाइं जिम वस्त्र विना वस्त्र शुद्ध न कहि त भणो त खोटु जिम जलस्नानई जल संसर्ग टल्या पछी पणि जल शुद्ध कहिई तिम अयोगिनई योग गया पछी पणि योगइं शुद्ध कहिइं त े माटइं साधु