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१०८ बोल संग्रह
१७ प्रमाद अनाभोग विना केवलीनइं द्रव्यहिंसा न हुई एहबी मूलयुक्ति कहइ छइं तेहज खोटी,
जे माटई अवश्यभावी हिंसानां कारण न कहियां केवल अयतनानई उद्देशइं, ए कारण कहियां सघलई ए हेतु लीज इ तो आकुट्टिकादिक भेद न मिलई ।। ६० ॥
केवलीनई द्रव्यहिंसा हुइ ते सर्व प्रकार जाणतां हिंसा नुबंधी रौद्रध्यान हुइ एहवु कहइं छइं ते खोटु,
जे माटइं इम कहतां द्रव्यपरिग्रह छइं तेहना सर्व प्रकार जाणतां संरक्षणानुबंधी रौद्रध्यान पणि न वारिउं जाई।। ६१ ।।
(.६२ ) प्रमत्तसंयत शुभयोगनी अपेक्षाइं अनारंभी, अशुभयोगनी अपेक्षाइं आरंभी भगवतीसूत्रमा कहिया छइं तिहां शुभयोग ते-उपयोगई क्रिया, अशुभयोग ते-अनुपयोगई एहवुवृत्ति कहिउं छइं ते कुवेषी अशुभयोग अपवादई कहइं छइं ते प्रकट विरुद्ध
जे माटइं जाणी मृषावाद मायावत्तिया क्रिया भणी अप्रमत्तनइं पणि प्रकट जणाइं छइं तथा अपवादई पणि शास्त्ररीति बृहत्कल्पादिकई शुद्धताज कही छई तो अशुभयोग किम कहिइं ॥ ६२ ॥
आरंभिकी क्रिया ६ गुणठाणइं सदा हुई, एहवु लिख्यु छइं ते न घटइं__ जे माटइं अन्यतरप्रमत्तनइं कायदुष्प्रयोगभावइं ज आरंभिकि क्रिया पन्नवणासूत्रवृत्तिमां कही छइं॥ ६३ ॥ .
बो० सं० २