SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ १०८ बोल संग्रह जे माटइं-"अत्थेगइआ अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंत संसारकंतारं अणुपरिअति " [श० ९. उ० ३३] ए सूत्र अनंत संसारनु आगलि कहिउं छइं ते भणि पहिलुसूत्र जमालि सरखा देव किल्बिषियातुज संभवइं ॥ ४५ ॥ 'अत्थेगइया' ए सूत्र अभव्य विशेषनी अपेक्षाइं। जे माटइं एहमां छेहडइं निर्वाण नथी कहिउं एहवं लिख्यु छइं ते पणि न घटइं-जे माटई असंवुडनई सूत्रइ पणि छेहडइं निर्वाण कहिउं नथी तथा भव्यविषय पणि एटवां सूत्र घणां छइ ॥ ४६ ।। ( ४७ ) "तिर्यग्मनुष्यदेवेषु, भ्रान्त्वा स कर्तविद् (?)भवान् । भूत्वा महाविदेहेषु, दूरान्निर्वृतिमेष्यति ॥" ए उपदेशमालानी कणिका श्लोकमां तिथंचमनुष्यदेवतामां केतलाइक भव करी ज़माली मोक्ष जास्यइं एहवं कहिउं छई तेणई करी अनंता भव नावइ, तिहां कोइक कहई छई जे ए भव लोकनिदित केतलाइक लीधां बोजां सूक्ष्म एकेन्द्रियादिकमां अनंता जाणवा एह पणि घणंज ताण्य जणाई छई। जे माटइं नाम लेई व्यक्ति भव कहिया ते थूल किम कहिइं, अनइं था कता अनंता भव पणि जाण्या ।। ४७ ॥ ( ४८ ) , कर्णिकामां दूरइं मोक्ष जास्यइं एहवं कहिउं ते माटइं केतलाइक भव कहिया तो पणि थाकता अनंता लेवा एहवं लिख्यं छइं ते पणि पोतानीज इच्छाइं, जे माटइं___ "तिर्यक्षु कानपि भवानतिवाह्य कश्चिद् देवेषु चोपचित-सञ्चितकर्मवश्यः ।
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy