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________________ १०८ बाल संग्रह लेईइ इम अनंता भव जमालीनइं थाई एहवु लिख्यु छइं ते न मिलइं। जे माटइं एहवो विषम अर्थ पूर्वि कणि विचारिओ नथी तथा ९भेद तिर्यंचमां पणि नियमइ अनंता भव आवई नहीं॥४२॥ कोइक तिर्यंचनी कायस्थिति लेई जमालीनइं अनंता भव कहई छई ते पणि कल्पनामात्रजे माटई सूत्रइं भवग्रहणज कहियां छइं ॥ ४३ ।। ( ४४ ) "च्युत्वा ततः पञ्चकृत्वो, भ्रान्त्वा तिर्यग्ननाकिषु । अवाप्तबोधिनिर्वाणं, जमालिः समवाप्स्यति ॥१॥" ए हैमवीरचरित्रश्लोकमां एहवं कहिउं छई जे जमाली तिहांथी चबी ४ वार तिर्यंच मनुष्यदेवतामां भमी मोक्ष जास्ये एहथी अनन्त भव नथी जणाता, तिहां कोइ कहइं छइं जे पंच वार तिर्यंचमां भमतां भमतां अनंत भव थाइं ते न मिलइ । जे माटइं भव ग्रहणइं भमतां अनंत भव न घटइं ।। ४४ ॥ "देव किदिबसिया णं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्ख एणं ठिइवखएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छति कहिं, .उववज्जिति ? [श० ९. उ. ३३] ए सामान्य सूत्र सामान्यथी देव किल्बिषीयानइं चत्तारि पंच' शब्दथी अथवा 'जाव' शाब्दथी जेम अनंतो संसार लीज इं तिम जमालीन इं सूत्रइं पणि 'जाव' शब्द 'ताव' शब्द बाहरेथी लेइ अनंतो संसार कहवो एहवुलिख्यु छइ, ते घणुज ताण्यु। एवं प्रतिभासइं छई तथा ए सामान्य सूत्रज एहवु पणि संभवतु नथी
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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