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________________ १०८ बोल संग्रह मार्गानुसारी न हुई ज एहवी एकांत पणि न घटइं जे माटइं ए तंत ग्रहतां मेघकुमार हस्तिजीवनइं पणि मार्गानुसारिपणुं न आवई योग्यता लेइं इनो कोइ दोष नथी ।। २३ ॥ ( २४ ) भगवतीसूत्रमा ज्ञानरहित क्रियावंत देशाराधक कहिओ छइं ते भांगानो स्वामी खारीनई टीकामां बालतपस्वी वखाण्यो छइं, ते मार्गानुसारी ज मिथ्यात्वी हुई ए अर्थ कुवेषीनई ए भांगानो स्वामी द्रव्य क्रियावंत अभव्य जे कहइं छइं आप छंदइ ते न घटइं जे माटइं अभव्यादिकनइं देशथीइं आराधकपणं नथी व्यवहारइं आराधकपणुं तेहनइं छइ ते पणि न घटइं जे माटई ए मुग्धव्यवहार लेखामां नहीं लिंगव्यवहारनी परि क्रियाव्यवहार पणि अपुनर्बंधकादि परिणाम विना पंचाशकादिक ग्रंथि निरर्थक कहिउं छइं ।। २४ ।। . ( २५ ) निह्नवइं क्रिया ज्ञानथी भागी अनइ सत्काज्ञा भागी छइं ते माटइं ले देशाराधक तथा देशविराधक कहिइं एहवं लिख्यं छइं ते सर्व विरुद्ध, जे माटइं ते सर्वथा आज्ञाबाह्यज कहिया छइं ॥ २५ ॥ जेहनइं ज्ञान छतइं पाम्या चारित्रनो भंग हुई अथवा चारि बनी अप्राप्ति हुई ते देशविराधक एहवं भगवती सूत्रनी वृत्ति १. यह शब्द क्या है ? यह स्पष्ट नहीं है। २- उवेषीनई।
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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