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________________ १०८ बोल' संग्रह । २० ) सम्यक्त्वथी घणु ढुकडो मार्गानुसारी हुई, ते संगम-नयसारादिक सरिखोज पणि बीजो न कहिइं, एहवं छइं ते न घटई. जे माटई १-अपुनबंधक, २-सम्यग्दृष्टि, ३-चारित्री ए ३ शास्त्रइ' धर्माधिकारी कहिया छइं, ते तो आप आपणइ लक्षणे आणिइं पणि एक एकथो ढूकडापणानो तंत नथी ते माटई जिम सम्यग्दृष्टि चारित्रथी वेगलो पणि पामिई-तिम मार्गानुसारी सम्यक्त्वथी वेगलो पणि हुइं ते वातनी ना नहीं ॥ २० ॥ ( २१ ) मिथ्यात्वोनी दया व्याधादिकना मनुष्यपणानइं सरखी * एहवं लिख्यं छइं ते महाद्वेषन वचन जे माटई अपुनबंधकना दयादिक गुण उपदेशपदादिक ग्रंथमां-वीतरागदेवनी सामान्य देशनाना विषय कहिया छइं ॥ २१॥ ( २२ ) जननी क्रियाई अपुनबंधक हुइं पणि अन्यदर्शननी क्रियाई न हुई ज एहवं जि कहई छई ते न मानवं। जे माटई सम्यग्दृष्टि स्वशास्त्रनी ज क्रियाइं हुई अनइं अपुनबंध अनेक बौद्धादिक शास्त्रनी क्रियाइं अनेक प्रकारनो हुइ एहवं योगबिंदु प्रमुख ग्रंथई कहिउं छइं ॥ २२ ॥ . ( २३ ) "असद्ग्रहत्यागेनैव तत्त्वप्रतिपत्तिर्मार्गानुसारिता"२ एहवं वंदारुवृत्ति कहिउं छइं ते माटइं जैनशास्त्रना तत्त्व जाण्या विना १. शास्त्रिइ। २. सारइता।
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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