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१०२ महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजय जी कृत ते सवि भोगविउं मइ साहिब हवइ तूं एक आधार, तिरियमांहिं पणि कस अंकुश वध भूख-तृषादि निरोध. परवशता अविवेक विडंबन माया मद भर क्रोध, जंगल वास अगास ते ओढण पोढण दिसना भाग, रोग शोग न वि औषध वषध विरुआ व्यसन विवाग
मनुषमांहिं पणि ठाला भूला दुखिया बहुजन दीसइ, यावजीव क्लेशो कुनिवेशी अन्य सुखिं रद पीसइ, नीच निभ्रंछन निर्द्धन अयश चारक रोध, व्यसन आजीविका खंडण भंडन दंड मुंड उपरोध,
चिता थकी पणि अधिकी चिता बिंदु अधिक जे दोठी, जीवतानइ पणि बालइ टालइ कुण तेहणी कहो चीठी, तेहमां पडिया बहु दुख नडिया धनपति पणि अवतार, नरनो पामीआं सुख लहस्यइ बलद वहइ जिम भार
देवलोकमांहिं देव विराजइ दिव्याभरण शरीर, दिव्य ऋद्धि परिवार अनोपम दिव्यशक्ति वडवीर च्यवन समय ते छोडी जातां तेहोनइ जे दुख होइ, रिदय न फाटइ जो तेहथी तस वज्र घडिउं तो जोइ