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कर्मेंन्द्रिय स्पर्शेन्द्रियं रसनेन्द्रिय. घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय अने श्रोत्रेन्द्रिय अर्थात् चामड़ी, जीभ, नाक, ग्रांख अने कान ए पांच ज्ञानेन्द्रिय; हाथ पर आदि कर्मेन्द्रिय ज्यारे प्राणी ऊंघतो होय त्यारे ज्ञानेन्द्रिय अने कर्मेन्द्रिय एम बे इन्द्रियो मां थी एक पण इन्द्रिय नी प्रवृति होती नथी. छतां पण प्राणी मन बड़े स्वप्न मां बधी क्रियाओ करे छे. तेम इन्द्रियं विना जीव पण कर्म ग्रहण कॅरी शके छे.
मूलम् -
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४.
जीवस्तथा कर्मभर हिलाति, स्वप्नों भ्रमोऽयं नतु मैत्रमारव्यः । महत्तमे तस्य फले च दृष्टे, पान, हियत्स्वप्नमयं स्मरत्यहो ११ गाथार्थ- तेवीज रोते जीव कर्म समूह ने ग्रहण करे छे स्वप्न ए भ्रम छे एम न कहेवु कारण के उत्तम स्वप्नोनु फल देखाय छे, स्वप्ननु स्मरण थाय छे एम न केहवु, विवेचन- इन्द्रिय विना पण प्राणी स्वप्न मां बधी क्रियाओ मन थी करे हे तेम इन्द्रिय विनापण जीव कर्म ग्रहण करे छे. ते बाबत मां वादी शंका करतां जगावे छे के दृष्टांत बराबर घटतु नथी कारण के स्वप्न ए तो भ्रम छे. कर्मो नुं फल देखाय छे परन्तु स्वप्नो नुं फल देखातु नथी, माटे स्वप्न ए भ्रम छे. तेनु समाधान करतां ग्रंथकार श्री जगावे छे के स्वप्न ए