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मानी 'चीं-चीं' करवा लागे छे एटले पकड़वा वाला आवी तेने बांधी ले छे. पण जो भ्रम राख्या वगर मूठी वालेली छोड़ी दई वांदरी चाल्यो जाय तो बंधन मां आवतो नथी. जेवी रीते पोपट अने वांदरो प्रबद्ध छतां भ्रम थी पोताने बांधला मानी लई बंधाय छे. तेवीज रीते आत्मा परण अनात्मीय वस्तु मां स्वपरणा नी बुद्धि करवाथी बहिरात्मपणे अमुक त्याग करवा योग्य अने अमुक उपादेय एटले आदरवा योग्य एवा विचार रहित थई केवल इन्द्रियोना विषय मां आसक्ति राखवाथी कर्मो वड़े बंधाय छे। अने ज्यारे शरीरादि वस्तु मां अनात्मीयता प्राचरी अंतरात्माथी हेयोपादेय ना विचार पूर्वक विषय सुख थी पराङमुख एटले संसारवर्ती वस्तु मां राग-द्वेष रहित थाय छे. त्यारे ते संसार मां रह्या छतां पण मुक्त थाय छे अने ज्यारे ते तेवी रीते मुक्त थाय छे त्यारे अंतरात्मा एवा तेने केवल ज्ञान प्रगट थवाथी परमात्म दशा प्राप्त थाय छे.
मूलम्
भ्रमे तु मुक्ते मनसः सकाशा-दात्मैष मुक्तो भवतीतिसिद्धम् । श्रस्मस्तुमुक्तेहिभवेदभेदस्तदात्मनः श्रीपरमात्मनश्च ॥ ३१ ॥ गाथार्थ:-- मन थी भ्रम थी मुक्त थये छते आ आत्मा भ्रम थी रहित थाय छे. भ्रम थी रहित थये छते आत्मा अने परमात्मा नो अभेद थाय छे.