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( ३२२ ) गाथार्थः-अंतिम भव मां जेवा प्रकार नो प्राकार हतो तेवा प्रकार नी प्रतिमा महापुरुषोए स्थापेली छे. भगवान नी जे अवस्था जेने रूची होय तेवा प्रकार नी अवस्था नी प्रतिमा बनावी ने तेना अर्थीयो वड़े ते प्रतिमा पूजाय छे. विवेचन:-भगवान जिनेश्वर देव जे भव मांथी मोक्ष मां जाय ते तेमनो छेल्लो भव गगाय छे. तेमां जिनेश्वर देवनी जन्म अवस्था, राज्यवास्था, श्रमणावस्था केवली अवस्था अने सिद्ध अवस्था ए प्रमाणे अनेक प्रकार नी अवस्थाो . होय छे. तेमांथी जे अवस्था नी जेने रुचि होय तेवा प्रकार नी अवस्था नी प्रतिमा बनावी ने तेना अर्थीग्रो वड़े ते प्रतिमा पूजाय छे.
॥ अथ अष्टादशोऽधिकारः ॥ निराकार नुपण पूजन, तेनी स्थापना अने तेनी पूजानु फल:मूलम्यद्वाऽस्त्वनाकारवतोऽपि बिम्ब,सिद्धस्य शुद्ध भगवत्सुनाम्नः। तत्तत्स्वचित्ताशयचिन्तिताशां, साक्षादिवेदंवितरत्वशङ्कम् ।१ गाथार्थ:--निराकार एवा पण भगवान नाम ना सिद्ध नं निर्मल बिम्ब पण साक्षात् सिद्ध नी जेम तेवा प्रकार नी मन मां विचारेल आशा निशंक पणे विस्तारे छे.