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गाथार्थ :-ए प्रसिद्ध छे के सेवके स्वामी ने अनुसखं जोइये. तो मुमुक्षुप्रोए सिद्धो ना गुणो मेलववा माटे अमूर्त, निराहार, गतद्वेष, वीतराग, निरंजन, निष्क्रिय, गतस्पृहा, स्पर्धा रहित, बंधन संधि रहित, केवल-ज्ञान रूप निधान थी सुन्दर अने निरन्तर आनन्द रूप पियूष रस थी पूर्ण एवा गुण मय सिद्धो होवाथी तेमना गुणो नुं अनुकरण यथाशक्ति करवू जोइये.
विवेचन:- व्यवहार मां एक वात प्रसिद्ध छे के स्वामी ने अनुसखाथी स्वामी ना नुणो सेवक मां आवे छे. माटे सेक्के स्वामी ने अनुसऱ्या जोइये. तेम अहियां पण मोक्ष ना अर्थी आत्माोए सिद्ध ना गुणो मेलववा माटे सिद्धो मां रहेला अरूपी पणुं, अनाहार पणुं, द्वेष रहित पणुं,, वीतरागता, निरंजन पणुं, निष्क्रियता, स्पृहा रहित पणुं, स्पर्धा रहित, पणुं, बंधन अने संधि रहित पणुं, सत्केवल ज्ञान, निरन्तर आत्मानंद रूप पियूष रस थी पूर्ण पणुं विगेरे गुणो नुं यथा शक्ति अनुकरण करवू जोइये.
यद्यप्यमीषां न गुरणान्समस्तान, पूर्णानिमेसेवितुमत्र शक्ताः । तथाप्यमीसापवमात्मयोग्य,श्रित्वावलंसिद्धगुणानश्रयन्ति ।१.