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( २५६ ) शरीर मां चेष्टा होय छे तेथी तेनी सत्ता छे. तेवीज रीते शक्ति, महेश, वीर, भूत, सती, जांगुलिका, सपत्नी अने सिद्धायिका नी सिद्धि पण जाणवी. विवेचनः कोई मनुष्य, औषधि, मंत्र, गुटिका अथवा अदृश्य थई शकाय एवा अंजन थी अदृश्य थई गया बाद तेना शरीर ने माणसो जोई शकता नथी. तो शुं अदृश्य थनार माणस नुं शरीर नथी ? जो माणस नुं शरीर होय तो इन्द्रियो वड़े केम देखातुं नथी ? ते माणस नुं शरीर अदृश्य थवा छतां लेबुं, मूक विगेरे क्रियानो माणसो जोई शके छे एटले शरीर नी हयाती छे, एम नक्की थाय छे. माटे इन्द्रियो नुं ज्ञान सत्य नथी. तेवीज रीते शक्ति, महेश, वीर, भूत, सती, जांगुलिका, सपत्नी तथा सिद्धायिका विगेरे नी सिद्धि पण जाणी लेवी.
चेष्टा थी अदृश्यपणु मानवू मूलम्:एतस्य सिद्धौ हि परोक्षसिद्धिः, तत्सेधनात् स्वर्गपरेतसिद्धिः। न दृश्यते यन्ननु चेष्टयपिःकथं हि तद्वस्तुसदिष्यते भोः।१६ स्थाने परं सर्वमिदं हिकेवली,ज्ञानेन जानाति यदेववस्तु सत् । प्रतस्तदीयं वचनं प्रमाणं, यदुच्यते तेन परावबुध्य ।२० गाथार्थ! -ए सिद्धिप्रोमां परोक्ष नी सिद्धि थाय छे. तेनी सिद्धि थी स्वर्ग अने परलोकनी सिद्धि थाय छे. जे वस्तु