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( १६२ ) जगत नो नाश कोनाथी थाय छे. एम संशय थाय छे, तो आप तेनुं रहस्य अमोने जणावो. तेनो उत्तर ग्रंथकार श्री आगल नी गाथा मां जगावे छे. मूलम् - त्रिकालविज्ञा इति योगिनोये,निरागिणस्तेऽभिदविशिष्टाः। कालात्स्वभावानियतेश्चवीर्यतःसृष्टिक्षयौस्तःसमवायपंचकात् ३ गाथार्थः- त्रिकाल ज्ञानी, निरागी अने विशिष्ट एवा योगो पुरुषो कहे छे के काल, स्वभाव, नियति, कर्म अने उद्यम ए पांच समवाय कारण ना योगे सृष्टि - सर्जन अने सष्टि नो संहार थाय छे. विवेचन:-जैन शासन नो एवो सिद्धान्त छे के कोई पण कार्य मां पांचे कालादि कारणो अवश्य रहेला होय छे अर्थात् कालादि पांच कारणो कोई पण कार्य मां अवश्य होय छे कदाच गौण-मुख्य पणे होय ते संभावित छे. जेमके आंबा ऊनाला मां थाय छे तेमां काल कारण छे. अांबा नी गोटलीज प्रांबा थाय परन्तु बीज कोई चीज थी प्रांबो न थाय, तेमां स्वभाव ए कारण छे. अथित् प्रांबानी गोटली नो आंबो थवानो स्वभाव छे ऊनालो होवा छतां घरणा प्रांबानो ऊपर आंबा आवता नथी, तेमां काल अने आंबा थवानो स्वभाव छतां भवितव्यता ना कारणे प्रांबा नथी पावता.