________________
( १५६ )
मनुष्य सुख नो कर्ता छे अने परमेष्ठि नुं ध्यान करवाथी पोताना आत्मा मां प्रज्ञान रूप अंधकार नो नाश करवाथी ते मनुष्य संहारक छे.
मूलम् -
यथैव लोके किल कोsपि शूरः स्वाम्यात्तशस्त्रेरपि सर्वशत्रून् सञ्जित्य तत्संहृतिकृन्निजाङ्ग, सुखस्यकृत्यापि भवेत्सक र्त्ता ६६ गाथार्थ - जेम लोक मां कोई शूरवीर स्वामी पासे लीधेल शस्त्रो वड़ े सर्वशत्रुनोने जीती ने शत्रु नो संहारकर्त्ता ने पोताना शरीरे सुख थवाथी सुख कर्त्ता तरीके गरणाय छे.
विवेचनः - हवे ग्रंथकार श्री लौकिक दृष्टांत द्वारा ते वस्तु ने स्पष्ट करतां बतावे छे के जेम संसार मां कोई शूर वीर रण योद्धो युद्ध ना समये पोताना स्वामी नी पासे थो शस्त्रो लई ते शस्त्रो वड़े सर्व शत्रुश्रोने जीते छे प्रने जयना कारण थी पोताने सुख थाय छे तेथी शत्रुम्रो नां संहार करवाथी संहारक तरीके गरणाय, अने पोताना सुख नो करनार होवाथी कर्त्ता तरीके गरणाय छे. तेम मनुष्य परमेश्वर नुं ध्यान करवाथी पोताना आत्मा मां सुख थतुं होवाथी पोताना सुखनो कर्त्ता गणाय छे। अने ईश्वर ना ध्यान