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गाथार्थ:- जीव तेवा प्रकार ना करेल कर्म ना योगे दुर्गति अने दुःख, सुगति अने सुख प्राप्त करे छे अने ज्यारे आ जीव सम भावना प्राश्रय ले छे त्यारे ब्रह्मत्व ने पामे छे. विवेचन:-संसार मां जीव राग अने द्वेष ने वश बनी जीव हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कजीयो, खोटुं पाल, चाड़ी खावी, आनन्द, शोक, माया मृषावाद अने मिथ्यात्वशल्य विगेरे पापो नु सेवन करवाथी पाप नो बंध थाय छे, अने ते पाप ना उदये निगोद, नरक अने तिर्यंचादि दुर्गति मां जाय छे अने त्यां भूख, तरस, रोग, शोक, दारिद्रय, गर्भवेदना, नरक. वेदना अने निगोद नी वेदना विगेरे अनेक प्रकार नां दुःखो पामे छे. अने दर्शन, पूजा, सामायिक, दान. शियल, तप, भाव, पौषध, प्रतिक्रमण, व्रत, नियम अने ध्यानादि द्वारा पुण्य नो बंध करवाथी ए पुण्य ना उदये मनुष्य गति, देव गति, शरीर नुं आरोग्य, दीर्घ आयुष्य, बुद्धि ना पटुता, इन्द्रिय नी संपूर्णता, लक्ष्मी, मान, यश आदि अनेक प्रकार ना सुखो मेलवे छे परन्तु जीवन मां समता भाव प्राप्त थवा थी जीव ब्रह्मत्व एटले मोक्ष पामे छे.
तुष्टिर्जनानां परमेश्वरस्य, चेत्सृष्टि संहारकथाप्रवृत्त्या । स्फूतिप्रभाव प्रतिपादनार्थ,तदेति वाच्या स्तुतिरीश्वरस्या६४।