SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशतरंगिणी. ते सांजली मंत्री श्वरेफरी ने तेने एक हजार सोनामोहोरो श्रापी. वली ते समये अरिसिंह कविराजे कं के, श्री वासांबुजमाननं परिणतं पंचांगुलिवझतो जग्मुर्द क्षिणपंचशाखमयतां पंचापि देवकुमाः ॥ वांडापूरणकारणं प्रणयिनां जिह्वैव चिंतामणि जता यस्य किमस्य शस्यमपरं श्रीवस्तुपालस्य न अर्थ- जे वस्तुपालनं मुख तो लक्ष्मीने निवास करवाने क मल सरखं बे, तथा हाथमां रहेली पांचे ांगली ना मिषथी पांचे जातिनां कल्पवृक्षो तो जेने स्वाधीन थएलां बे, तेम लोकोनां वां बिताने पूरनारी जेनी जिह्वा तो चिंतामणिरत्नसमान बे, माटे एवी रीते श्री वस्तुपालमंत्री नुं बीजुं पण शुं प्रशंसवालायक नथी ? ते सांजली मंत्री श्वरे तेने बे हजार सोनामोहोरो पी. एक दहाडो वीरधवल राजाए तुष्टमान थइने वा मंत्री ने दश लाख सोनामोहोरो इनाममां पी; पण ते संथली सोरामोहोरो तेणे घेर पहोंचतां पेहेलांज मार्गमा प्राचीने प दीधी. त्यारे कोइ कविए कह्युं के, श्रीमंत दृष्ट्वा द्विजराजमेकं पद्मानि संकोचमवाप्नुवंति समागतेऽपि द्विजराजलदे, सदा विकाशी तव पाणिपझे ₹1 - लक्ष्मीवान एवां कमलो एकज द्विजराजने कहेतां चंने जोने संकोचाइ जाय बे, पण हे मंत्री श्वर ! लाखो विजराज (ब्राह्मण) व ते पण तमारुं हस्तकमल तो हमेशां प्रफुल्लितज रहे बे !! ॥ १ ॥
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy