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________________ 200 उपदेशतरंगिणी. अर्थ - जिनपूजा, दया, दान, तीर्थयात्रा, जप, तप, ज्ञान, परोपकार ए वे मनुष्य जन्मनां फलो बे. कां बे के, त्रिकाल देवपूजा करवी, यशने एकठो करवो, लक्ष्मीने सुपात्रे पवी, न्यायमार्गपर मनने दोडाव, काम, क्रोध आदिक शत्रुर्जने मारवा, प्राणी प्रते दया करवी, जिनेश्वर प्रजुए कहेला सिद्धांतो सांजलवां, अने तेम करीने वेगथी मुक्तिरूपी स्त्रीने वरवी जिनपूजा करवाथी जय थतो नथी, दरिद्रता नाश पामे बे, तथा कुगति पण मलती नथी. देवपूजा गुरूपास्तिः, स्वाध्यायः संयमस्तपः ॥ दानं चेति गृहस्थानां, षट् कर्माणि दिने दिने ॥ १॥ अर्थ- देवपूजा, गुरुसेवा, सज्जायध्यान, संयम, तप, अने दान ए कार्यो गृहस्थोए हमेशां करवां. श्रावकोनां गृहकार्य, काननुं कार्य, व्यापार, धनोपार्जन दिक कार्यो तो या लोकने साधनाएं बे, पण उपर जावेलां कार्यो परलोक साधनाएं बे, माटे श्रावकोए ते कार्यो हमेशां करवां. शास्त्रमां कह्युं वे के, त्रिकाल जिनपूजा करवी, हमेशां संघनुं सन्मान करवुं, सज्जायध्यान करवुं गुरुसेवा करवी, विधिपूर्वक दान देवुं, प्रतिक्रमण करवुं शक्तिप्रमाणे व्रत पालवं, ज्ञाननी पाठ करवो, इत्यादि धर्मकार्यो श्रावको करवां. मंडपदुर्गमां कुंवरपाल नामना श्रावक हमेशां दरेक पहोरे सीता महासतीए करावेली श्री सुपार्श्वनाथ प्रजुनी प्रतिमानी पूजा करता जेम श्रेणिक राजा विविध प्रकारनां पुष्पादिकोथी जिनपूजा करेली बे, ते जिनपूजा करवी, श्रीकृष्ण जेम नेमीश्वर प्रजु प्रमुख अढार हजार साधुर्जने वांद्या हता तेम गुरुमहाराजने वंदन कर. - यांसकुमारनी पेठे दान देवुं, सुदर्शन शेवनी पेठे शील पालवं.
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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