________________
१७८
उपदेशतरंगिणी.
वाइ पण उत्तम पर्वो बे. इत्यादि पवतिथिमां प्रतिक्रमण - दिक कर्याथी शुभकर्मो बंधाय बे. कांबे के अष्टमीनी तिथि ठे कर्मोंनो नाश करनारी बें, चतुर्दशी मोक्ष आपनारी बें पंचमी केवल ज्ञान आपनारी बे.
अष्टाहिकादिमहिमां जिनपुंगवानां कुर्वेति ये सुकृतिनः कृतिनः सुभक्त्या ॥ कर्माष्टकं जगति ते हि नवाष्टकस्य
मध्ये विधूय शिवदं शिवधाम यांति ॥ १ ॥
अर्थ- जे पुण्यशाली जीवो उत्तम नक्तिश्री श्री जिनेश्वर प्रभुर्जनो अाइ महोत्सव करे बे, ते या जगतमां खरेखर व जवनी अंदर आठे कर्मोनो नाश करीने सुख देनारा मोप्रते जाय बे.
सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, जिनपूजा, स्नात्रपूजा, विलेपनपूजा, ब्रह्मचर्य, दान, दया प्रमुख क्रिया चतुर्मासनां - भूषणो बे. वली ते चतुर्मासमां श्रावकोए व्याख्यान श्रवण, जिनदर्शन, गुरुवंदन, प्रत्याख्यान, श्रागमश्रवण, तथा शक्तिमुजब तप विगेरे पण कार्यो करवां वली सांवत्सरिक पर्वने पण उपली क्रीयार्जनी साथे आलोचना तथा क्षमायाचन पूर्वक सफल करवुं.
जिणाएं पूजत्ताए, साहूणं पजुवास | आवस्सयंमि सज्जाए, नऊमेह दिये दिले ॥ १ ॥ अर्थ - जिनेश्वरोनी पूजामां, साधुर्जनी पर्युपासनामां, श्रावश्यकमां, तथा सज्जाय ध्यानमां दनदनप्रते उद्यम करवो.
एक दहाडो श्री हेमचंद्राचार्ये कुमारपाल राजाने उपदेश दधाथी ते त्रिकाल जिनपूजामां तत्पर थया, हमेशां अढारसो