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________________ उपदेशतरंगिणी. अर्थ- एवी रीते तीर्थोने पण पुरुषोएज प्रवर्तावेलां जे. केमके, अतीत, अनागत अने वर्तमान कालमां अनेक सिखोने सिपदनी प्राप्तिथी श्रीशजय तीर्थन "श्रीसिषक्षेत्र तीर्थ" एवं नाम प्रसिद्ध अयुं ले. कडं ने के. उस्सप्पिणी पढमं, सिधो इह पढमचकिपढमसु ॥ पढमजिस्सय पढमो, गणहारो जत्थ पुंडरि ॥१॥ चितस्स उन्निमाए, समणाएं पंच कोडिपरिवरि ॥ निम्मलजसपुंडरियं, जयन तयं पुंडरियतित्थम् ॥२॥ अर्थ- आथी करीनेज हमणाना कालमां पण श्रीशत्रुजय, सोपारक, वृद्ध नगर आदिक क्षेत्रोमां नाना प्रकारनां स्थानकोथी आवेला संघो चैत्री पुनेमने दिवसे पुष्प, दाम आदिकना दानपूर्वक सिद्धांतोमां कहेली विधिथी पूजा, ध्वजारोपण, घीनी धारावमी, तथा प्रदक्षिणा आदिक महोत्सवो करे . वली कडं बे के, जे रायणना वृदनी नीचे नालिराजाना पुत्र श्रीज्ञानदेव प्रनु समोसर्या हता, ते रायणनुं वृद वंदनिकपणाने प्राप्त अयु . वली सारावलि प्रकीर्णकमां पण कडं ने के, नवाणु पूर्व वखत श्रीषनदेव प्रन्नु शत्रुजयपर समोसर्या . एटले ६ए०५४ J0000000000 वार समोसा . तेम श्री रेवताचलजीनुं तीर्थ पण अनंता तीर्थकरोनां त्रण कल्याणको थवाथी प्रख्यात थएलुं . कडं ने के, दीदाकेवलनिर्वृति-कल्याणत्रिकमनंततीर्थकृताम् ॥ युगपदथैकमन्नवत ,स जयति गिरिनारगिरिराजः १ श्री नेमीश्वर प्रजुनां ज्यां त्रण कल्याणको थयां हतां त्यां श्रीकृत वासुदेवे त्रण प्रासादो कराव्यां हतां, तथा नाना प्रकारना प्रनाववाली राजीमती, सांब प्रद्युम्नकुमार, मात्र जसना
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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