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________________ (५०) ॥ दृष्टांत पांचमु-त्रण वाणीआर्नु । एक गाममां कोई वाणीओ रहेतो हतो. पण तेणे पोतानी उम्मर वृद्ध होवाथी दुनियाना तडाका छाया जोया हता. तेने त्रण पुत्र हता तेओ केवा हुशियार छे तेनी परीक्षा सारु दरेकने एकैक हजार सोना महोरो आपी तेणे कडं के आटला द्रव्यथी व्यवहार चलावी अमुक वखत पछी तमारे पार्छ आवq. व्यवहार चलावीने पाछु आवq एम कडं पण तेनो अर्थ स्पष्ट न कॉ. त्रणे पुत्रो सोनामहोर लइ जुदे जुदे गाम गया. एक छोकरो तो बिलकुल मोजशोख करे नही, खावानो के सुवानो के फरवानो शोरुन नही तेमज परस्त्री, सट्टो के एवं बीजु दुर्व्यसन पण तेने नहोतुं तेणे तो वेपार करीने मोटी रुकम मेळवी अने खरच मापसर राखवायी मोटो पैसादार बनी गयो.. बीजो भाइ एवा विचारनो हतो के मूळ रकम जाळवी राखवी. बाकी व्याज के हांसल जे वधे ते खरची नाखवा. एटले एणे मुदलमा एक पाइ पण वधारी नहि, तेम घटाडी पण नहि. त्रीजो भाइ लहेरी हतो. एणे तो खावापीवामां मोजमजामां सघळा पैंसा उडावी दीधा, पार कोज नहि. मुदत पुरी थई त्यारे सर्व भाइओ.पाछा फया त्रीजा भाइनी हकीकत सांभळी सर्व हस्या अने तेना बापतेने घरमांथी काढी मक्यो.लोकोए तेनी निंदा करी. पहलाने बीजा भाइ माटे अनुक्रमे विशेष अने अल्प संतोष जणाव्यो. (उपनय) मनुष्यभव पामवो बहु दुलर्भ छे. ए प्राप्त थवामां अनेक विघ्नो आवी पडे छे. आवी अनेक मुश्केलीथी प्राप्त थयेल मनुष्य भव अने तेनी साथे जैनधर्म, निरोगी शरीर, गुरुनोयोग विगेरे जोगवाइ-सामग्री प्राप्त थवी पण तेटलीज मुश्केल छे. महा पुण्यवोगे ए सघळु प्राप्त याय छे. हवे आ मनुष्यभव प्राप्त करी केटलाक दुःसाध्य प्राणीओ तो बापडा लाडी वाडी अने गाडीनी लहेरमा व्हेंकाइ जइ धर्म शुं छे ते समजता पण नथी. आवा जविो पुण्यधन हारी जाय छे, प्राप्त थयेल वारसो गुमावे छे अने कपतनी जेम मोटो वारसो मळ्यां छतां गरीब थइ जाय छे. केटलाक माणसो तो प्रतिकूळ संजोगोने लीधे पाप सेवे छे पण उक्त कनिष्ट प्रकारना मनुष्यो तो सारा संजोगोनेज दुष्ट बनावे छे. मध्यम माणसो सार्दु जीवन जीवे छे. एओ कोइनु बगाडता नथी तेम मोटो स्थूळ के मानसिक परोपकार पण करता नथी. जे उत्तम प्रकारना जीवो छे ते तो अत्र महा
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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