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________________ (२९) छे. तेज रीते अप्रिय वस्तुनो संबंधः यतां निराश न यईः जq, कारणके निराशा एटले जीवतुं नरक, आपणने प्रतिकूळ प्रसंगोनू-निर्धनता, तो दुःख होय, तेमां निराशायी विशेष दुःख थाय छे. माटे तेवे समये तो विशेष धैर्य धारण करवु. आत्मानी अनंतकाळनी जींदगीमा आ जींदगी एक दिवस समान छे, एम. मानी मननुं समतोलपणु साचव. वन्निजइ भिच्चगुणो, न परुखं न य सुअस्स पच्चख्खं ॥ महिला उ नोभयावि हु, न नस्सए जेण माहप्पं ॥ १७॥ - अर्थः-पोतानुं माहात्म्य नाश न पामे माटे नोकरनां गुण परोक्षपणे न कहेवा, पुत्रना गुण प्रत्यक्षपणे न कहेवा, अने पत्नीना गुण उभय पणे परोक्ष के प्रत्यक्ष पणे वखाणवा नहि. ॥१७॥ ___ भावार्थः-आमां एक व्यवहारकुशळ मनुष्वने आचरवा योग्य सलाह आपवामां आवी छे. प्रथमतो पाताना नोकरना गुण परोक्षपणें-बीजा आगळ न कहेवा. नोकरना गुण बीजा आगळ कहेवाथी ते कदाच तेवा नोकरने पोतोन त्यां राखवा दोराई जाय; अने नोकर प्रामाणिक होय तोपण ज्यां विशेष पगार मळतो होय, त्यां जवा दोराय ए स्वाभाविक छे. नोकरनी रूबरूमां तेना गुणो कहेवाथी तेने काम करवाने उत्साह मळे छे, अने शेठ मारा गुणनी कदर बुझे छे. एथी एने सारो संतोष थाय छे. पुत्रना गुण प्रत्यक्षपणें न कहेवाः-पुत्रना गुण तेनी रूबरूमां कहेवाथी तेनी नानी वयने लीधे ते कदाच अभिमानी थई जाय. आ उपरथी एम समजवान नथी के तेनी भुलोज काढया करवी अथवा तो तेने वारंवार. ठपको देवो, आथी तो ते नटोर बनी जाय छे. प्रेम अने संयम बन्नेनी जरूर छे. घणा मातापिताथी पुत्रो डरता रहें छे, एवी जातनुं माता पितानुं पुत्रो प्रत्येनुं वर्तन घणुं शोचनीय छे. पितानुं नाम देतां बाळकना हृदयमां प्रेम अने पूज्यभाव प्रकटवो जोईए, त्यां पिता एटले त्रासजनक व्यक्ति एवो भाव ज्यां पुत्रना हृदयमां प्रकटे ए केटली अधम दशा!
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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