________________
श्री वैराग्य शतक पामो, दुःख मुक्त थवा सर्वे वीतराग भगवन्तना वचनने अनुसरो. आवी करुणा . भावना भाववावाळो आत्मा पोताने प्राप्त थयेल साधन संपत्तिथी बीजाने सुखी करवा प्रयत्न करतो रहे छे ने भावना-बळे, पोते परम सुख मेळवी बीजाने सुखी करे छे. (५१)
(५२) चोथी माध्यस्थ्य भावना कर्मतणे अनुसारे जीवे सारां नरसां कार्य कराय, राग द्वेष स्तुति निन्दा करवी तेथी ते नव युक्त गणाय. बळात्कारथी धर्मप्रेम वीतरागप्रभुथी पण शुं थाय, उदासीनता अमृतसरनां पान थकी भवभ्रान्ति जाय.
विवेचन - जगतना जीवमात्र कर्माधीन छे. पोते करेल कर्मने अनुसारे ते प्रवर्ते छे. सारा-बूरा कार्यो करे छे, सुखी दुःखी थाय छे. कोईने सुखी जोई ! आने में सुखी को छे. ए माराथी आगळ वध्यो छे. एवी अभिमाननी वृत्ति धारण करवी ए पाप छे ए अनर्थकारी छे. एज प्रमाणे कोईने दुःखी जोई-में आने आम करवा कह्यु हतुं, छतां तेणे ते प्रमाणे न कर्यु ने दुःखी थयो. मारू मान्यु ज नहिं. इत्यादि खेद करवो ए पण उचित नथी, युक्त नथी. एथी पण अहित थाय छे. ए बन्ने रागद्वेषनी छाया छे. बीजानु हित करवा सन्मार्ग बतावो, ने ए एने अनुसरे, ने सुखी थाय तो ते जाणीनेजोइने राजी थाव, न अनुसरे, उंधे मार्गे जाय ने दुःखी थाय