SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ श्री वैराग्य शतक विचार करे तो तेने - आत्माना ज्ञानदिगुण सिवाय सर्व अस्थिर-अनित्य-क्षणविनश्वर जणाय. आयुष्य - पवनथी थतां मोजां जेवुं - पाणीना परपोटा जेवुं ठोकर वागे ने माणस मरी जाय, खावा बेठो होय ने प्राण उडी जाय कोळीयो हाथनो हाथमां रही जाय, वात करतो होय - हसतो होय ने बगासुं खाय, त्यां परलोकमां पहोंची जाय, धन-माल मिल्कत - बधुं जोतजोतमां चाल्युं जाय. इन्द्रियना उन्मादविषयो सांजनी सन्ध्या जेवा चपळ, शरदऋतुना वादळा जेवा चंचळ कुटुंब परिवार - स्वजन - सम्बन्धि ए बधुं मायाजाळ - आज देखाय ने काल एमांनुं कांई नहि. दुनियानी कोईपण वस्तु ल्यो - विचार करो, आखर एनो नाश ज थवानो. हे सुज्ञानि-जीव ! विचार करी जो जगतमां एवी कई स्थिर- सदाकाळ रहेनारी चीज छे के जेनी तुं इच्छा करे छे ! अस्थिर वस्तुने चाहवाथी शुं वळशे. स्थिर वस्तुने शोध ने ते मेळववा प्रयत्न कर. (३६) - ( ३७ ) बीजी अशरणभावना जे षट्खंडमहीनां नेता चौद रत्नना स्वामी जेह, ने जे सागरोपमनां आयुष्यधारी स्वर्गनिवासी तेह, क्रूर कृतान्तमुखे टळवळतां शरणविनानां दुःखी थाय, तन धन वनिता स्वजनसुतादिककोई न एने शरणुं थाय. विवेचन - चेतन ! तने कांईक चिन्ता आवे छे, तने
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy