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________________ श्री वैराग्य शतक पुत्रादिकनां पालण - पोषण माटे धंधा कैंक कराय. शान्ति ने सुखने वेची संताप शोक व्होरी लेवाय, सर्व दुःखनुं साधन एवी स्त्रीने चेतन ! शाने च्हाय. ४८ विवेचन - ज्यां सुधी संसारमां न झंपलाव्युं होयविवाह-लग्न न कर्या होय, त्यां सुधी मस्त थई फरतो होय तेने कोइ जातनी उपाधी न होय, कोई जातनी चिन्ता न होय, पण पछीथी ते बे पगो मटी. चार पगो थाय. परण्या पछी 'पइनो' कहेवाय. एक पछी एक जंजाळ वधती ज जाय, एना दुःखनो पार न रहे, हा ? मोहथी ए दुःखने ए गणे नहिं पण दुःख ए दु:ख, रोज सवार पडे ने घरनी चिंता, खावानी चिंता, कमाववानी चिंता, शेठाणी साहेबना हुकमो पर हुकमो छुटतां ज होय, घरमां घी खुटी गयुं छे, तेल नथी, आ लाववानुं छे ते लाववानुं छे वगेरे. बाळबच्चा थाय पछी वात ज न पूछो ए तो वीती होय एज जाणे, घर चलाववा माटे - व्यवहार निभाववा माटे न करवाना धंधा करवा पडे, जेनुं मोढुं जोवुं न गमे एवाओनी गुलामी करवी पडे. हे चेतन ! क्षणिक सुखने माटे शा माटे आ भवमांज महादुःख व्होरी ले छे ! तारा आत्मिक सुख - शान्तिनुं लीलाम शा माटे करे छे ! तारा सर्वे दुःखनुं मूळ - कारण कोई होय तो ते स्त्रीमोह छे एने छोड ! ए उपाधिमां न पड इन्द्रियो पर - विषयपर विजय मेळव तो तारा सुखनी आनंदनी अवधि नहीं रहे. (३३)
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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